बहुत समय पहले सुदामा नाम का एक कृष्ण भक्त, राधाजी के शाप से शंखचूड़ दानवराज होकर, राजा दक्ष के वंश में जन्मा। इस दानव का भगवान श्रीकृष्ण ने किया।
शंखचूड़ के वध के बाद समुद्र में उसकी बिखरी उसकी अस्थियों से शंख का जन्म हुआ और उसकी आत्मा राधा के शाप से मुक्त होकर गौलोक वृंदावन में श्रीकृष्ण के पास चली गई।
एक और हिदू पौराणिक कथा के अनुसार शंख का जन्म समुद्र मंथन के दौरान हुआ था। समुद्र-मंथन से प्राप्त 14 रत्न निकले जिनमें छठवां रत्न शंख था। विष्णु पुराण के अनुसार माता लक्ष्मी समुद्रराज की पुत्री हैं तथा शंख उनका सहोदर भाई है।
कहते हैं जहां शंख है, वहीं लक्ष्मी का निवास होता है, इन्हीं कारणों से शंख की पूजा भक्तों को सभी सुख देने वाली है। शंख की उत्पत्ति के संबंध में धर्म ग्रंथों की मान्यता कहती है कि सृष्टि आत्मा से, आत्मा आकाश से, आकाश वायु से, वायु आग से, आग जल से और जल पृथ्वी से उत्पन्न हुआ है और इन सभी तत्व से मिलकर शंख की उत्पत्ति मानी जाती है।
भागवत पुराण के अनुसार, संदीपन ऋषि के आश्रम में जब श्रीकृष्ण ने शिक्षा पूर्ण होने पर उनसे गुरु दक्षिणा लेने का आग्रह किया। तब ऋषि ने उनसे कहा कि समुद्र में डूबे मेरे पुत्र को ले आओ। कृष्ण ने समुद्र तट पर शंखासुर को मार गिराया।
उसका खोल शेष रह गया। कहते हैं उसी से शंख की उत्पत्ति हुई। पौराणिक कथाओं के अनुसार, शंखासुर नामक असुर को मारने के लिए श्री विष्णु ने मत्स्यावतार धारण किया था। शंखासुर के मस्तक तथा कनपटी की हड्डी का प्रतीक ही शंख है। उससे निकला स्वर सत की विजय का प्रतिनिधित्व करता है।