नवरात्रि के नौ दिनों में की जाने वाली आराधना के तहत चौथे दिन माता कूष्मांडा की आराधना की जाती है। दरअसल मां कुष्मांडा देवी दुर्गा का ही स्वरूप हैं। सूर्य लोक में माता का निवास माना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार कूष्मांडा की दीव्य हंसी से ही ब्रह्मांड की उत्पत्ती हुई है। मां अंधकार में प्रकाशस्वरूप उनका यह केंद्र है। माता सिंह वाहिनी और अष्टभुजा वाली हैं। देवी अपने हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल – पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र, गदा आदि विराजित हैं।
ऊं ह्लीं कुष्मांडायै जगत्प्रसूत्यै मंत्र से माता प्रसन्न होती हैं। माता को भी गाय के गोबर के उपले, घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंक का जोड़ा, पान, सुपारी, कपूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा से हवन कर प्रसन्न किया जाता है। माता का स्वरूप बेहद दीव्य है। इनके अर्चन से शोकों का नाश होता है। माता की आराधना से आयु, यश, बल और आरोग्य मिलता है। देवी अपनी आराधना से जल्द प्रसन्न होती हैं।
माता को भगवान विष्णु की शकितयां भी प्राप्त हैं। माना जाता है कि माता की हंसी से ही ब्रह्मांड की उत्पत्ती हुई है। माना जाता है कि माता की हंसी बेहद दीव्य है। कूष्मांड शब्द का अर्थ ही ब्रह्मांड की शक्ति है। उन्हें सूर्य मंडल की अधिष्ठात्री देवी कहते हैं।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।