जब शिव के नेत्रों से टपके आंसू और बन गई ये पवित्र चीज

shiv-55af4a6879cc0_lभगवान शिव ने जगत के उद्धार के लिए अनेक असुरों का वध किया था। शिव की तरह ही कार्तिकेयजी ने भी असुरों का संहार कर सृष्टि का कल्याण किया। एक बार उन्होंने तारकासुर का वध किया तो उसके तीन बेटे तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली देवताओं से और भी ज्यादा शत्रुता रखने लगे।

जब उन असुरों का आतंक बहुत ज्यादा बढ़ गया तो स्वयं महादेव को आना पड़ा और उन्होंने उनका वध किया था। परंतु उनका अंत इतना आसान नहीं था। इसके लिए शिवजी को भी गणपति का आह्वान करना पड़ा।

कहा जाता है कि इन तीनों असुरों ने शक्ति प्राप्ति के लिए घोर तप किया। हजारों वर्षों की तपस्या के बाद ब्रह्माजी उन पर प्रसन्न हुए और प्रकट होकर बोले, वरदान मांगो।

तीनों असुरों ने अमरता का वरदान मांगा। ब्रह्माजी ने अमरता का वरदान देने से इन्कार कर दिया। वे बोले, कोई और वरदान मांगो क्योंकि अमरता का वरदान देना संभव नहीं है।

तब उन असुरों ने वरदान मांगा, हे ब्रह्म देव, आप हमारे लिए तीन पुरियों का निर्माण कर दीजिए। जब ये तीनों अभिजित नक्षत्र में एक पंक्ति में हो और कोई क्रोध पर विजय प्राप्त या शांत अवस्था में असंभव रथ तथा असंभव बाण से हमारा वध करना चाहे तो ही हमारी मृत्यु हो।

ब्रह्माजी ने वरदान दे दिया। उनके लिए तीन पुरियां यानी बड़े और विशाल नगर बना दिए गए। विश्वकर्मा ने बहुत सुंदर पुरियों का निर्माण किया। तीन पुरियों का निर्माण होने के कारण ही इन्हें त्रिपुरासुर कहा जाता है।

जब ये तीनों दानव वहां रहने लगे तो उन्होंने भयंकर आतंक मचाया। उन्होंने साधु-संताें और देवताओं को सताना शुरू कर दिया। तब सभी देवता भगवान शिव की शरण में गए। शिव ने देवताओं से कहा, मैं अपनी आधी शक्ति तुम्हें देता हूं। जाओ और त्रिपुरासुर से मुकाबला करो।

परंतु देवता त्रिपुरासुर का सामना नहीं कर सके। तब स्वयं शिवजी उन राक्षसों का वध करने चले। इसके लिए देवी-देवताओं ने उन्हें अपनी आधी शक्ति प्रदान की। उनके लिए रथ और धनुष-बाण की व्यवस्था की गई।

उल्लेखनीय है कि भगवान ने पृथ्वी को अपना रथ बनाया। चांद-सूरज इसके पहिए बने। विष्णुजी बाण और सुमेरू धनुष बने। वासुकी को डोर बनाया गया। इस प्रकार असंभव रथ और असंभव बाण तैयार हुए।

भगवान ने अभिजित नक्षत्र में बाण का प्रहार किया और तीनों पुरियों को जलाकर भस्म कर दिया। त्रिपुरासुर के आतंक का अंत हो गया परंतु यह दृश्य देखकर शिवजी के नेत्रों में आंसूू आ गए।

जहां भी उनके आंसू गिरे वहां रुद्राक्ष की उत्पत्ति हो गई। इसलिए रुद्राक्ष को बहुत पवित्र माना जाता है और शिवजी के पूजन में इसका उपयोग होता है।

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