पूजा पाठ का अभिन्न भाग है चावल मतलब अक्षत्। इसके बगैर माथे पर कुंकुम से लगाया गया तिलक भी अधूरा है। पूजा के संकल्प से लेकर दक्षिणा के टिके तक, सभी स्थान पर अक्षत् का इस्तेमाल जरुरी है। आखिर हमारी संस्कृति में चावल को इतना ज्यादा महत्व क्यों दिया गया है? इनके बगैर हर पूजा अधूरी क्यों मानी जाती है? विवाह के दौरान दूल्हा-दुल्हन के ऊपर भी क्यों अक्षत् उड़ाए जाते हैं?
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि इसके पीछे कई साड़ी वजह हैं। चावल मतलब धान, ये लक्ष्मी को सबसे अधिक प्रिय है। उत्तर तथा दक्षिण भारत के दोनों हिस्सों में सबसे प्रमुख आहार भी चावल ही है। ये सम्पन्नता का प्रतीक है, इसलिए इन्हें धान कहा गया है। जो धन पैदा करे, वो धान। धान की प्रत्येक बात निराली है, इसके सभी गुण ऐसे हैं, जो इसे पूजा में रखने योग्य बनाते हैं।
वही अक्षत् कभी खराब नहीं होता, ये दीर्घायु है। जितना अधिक पुराना होता है, उतना ही ज्यादा स्वादिष्ट होता है, इसलिए पुराने चावल की कीमत ज्यादा होती है। इनके लंबे वक़्त तक बने रहने की वजह से ही इन्हें आयु का प्रतीक माना जाता है। जब किसी के माथे पर तिलक लगाया जाता है, तो वो सम्मान तथा यश का प्रतीक होता है, उस पर दो दाने चावल के लगाने का अर्थ है कि उसकी आयु के साथ उसका यश तथा सम्मान भी लंबे काल तक जीवित रहे। पूजा में भी इसे इसी वजह से इस्तेमाल किया जाता है।