आप सभी ने कई बार महाभारत की कहानी देखी या सुनी होगी। कहा जाता है इस युद्ध में अर्जुन के रथ पर हनुमान जी के विराजित होने के पीछे का एक ख़ास कारण है। जी हाँ और इसका वर्णन आनंद रामायण में किया जा चुका है। ऐसे में आज हम आपको उसी वर्णन के बारे में बताने जा रहे हैं।
वर्णन के अनुसार एक बार रामेश्वरम् तीर्थ में अर्जुन और हनुमानजी जी का मिलना होता है। इस दौरान अर्जुन ने हनुमान जी से लंका युद्ध का जिक्र किया और पूछा कि जब श्री राम श्रेष्ठ धनुषधारी थे तो फिर उन्होंने समुद्र पार जाने के लिए पत्थरों का सेतु क्यों बनवाया? यदि मैं होता तो समुद्र पर बाणों का सेतु बना देता, जिस पर चढ़कर आपका पूरा वानर दल समुद्र पार कर लेता। यह सुनकर हनुमानजी से कहा कि बाणों का सेतु वहां टिक नहीं पाता, वानर दल का जरा सा भी बोझ पड़ते सेतु टूट जाता। इस पर अर्जुन कुछ बुरा लगा और उन्होंने कहा हनुमान जी से एक अजीब सी शर्त रख दी। अर्जुन ने कहा कि सामने एक सरोवर पर वह अपने बाणों से सेतु बनाएगा, अगर वह आपके वजन से टूट गया तो मैं अग्नि में प्रवेश कर जाउंगा और यदि नहीं टूटता है तो आपको (हनुमान जी को) अग्नि में प्रवेश करना होगा। हनुमानजी ने इसे सहर्ष ही स्वीकार कर लिया और कहा कि मेरे दो चरण ही इस सेतु ने झेल लिए तो मैं पराजय स्वीकार कर लूंगा और अग्नि में प्रवेश कर जाउंगा। इसके बाद अर्जुन ने अपने प्रचंड बाणों से सरोवर पर सेतु तैयार कर दिया। जैसे ही सेतु तैयार हुआ हनुमान जी अपने विराट रूप में आ गए और भगवान श्री राम का स्मरण करते हुए उस बाणों के सेतु पर चढ़ गए।
पहला पग रखते ही सेतु सारा का सारा डगमगाने लगा, दूसरा पैर रखते ही चरमराया और तीसरा पैर रखते ही सरोवर के जल में खून ही खून हो गया। हनुमानजी सेतु से नीचे उतर आए और अर्जुन से कहा कि मैं पराजित हो गया अग्नि तैयार करो। अग्नि प्रज्वलित हुई तो हनुमान जी उसमें जाने लगे लेकिन उसी पल भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हो गए और उन्हें रोक दिया। भगवान ने कहा- हे हनुमान, आपका तीसरा पग सेतु पर पड़ा, उस समय मैं कछुआ बनकर सेतु के नीचे लेटा हुआ था, आपके पैर रखते ही मेरे कछुआ रूप से रक्त निकल गया। यह सेतु टूट तो पहले ही पग में जाता यदि में कछुआ रूप में नहीं होता तो। यह सुनकर हनुमान को काफी कष्ट हुआ और उन्होंने क्षमा मांगी। मैं तो बड़ा अपराधी निकला आपकी पीठ पर मैंने पैर रख दिया। मेरा ये अपराध कैसे दूर होगा भगवन्? तब कृष्ण ने कहा, ये सब मेरी इच्छा से हुआ है। आप मन खिन्न मत करो और मेरी इच्छा है कि तुम अर्जुन के रथ की ध्वजा पर स्थान ग्रहण करो। इसलिए द्वापर में श्रीहनुमान महाभारत के युद्ध में अर्जुन के रथ के ऊपर ध्वजा लिए बैठे रहते हैं।