धार्मिक कर्मों में कभी भी नही करना चाहिए दिखावा, नहीं तो हो सकता है नुकसान

धार्मिक कर्मों का मानव जीवन में अत्याधिक महत्व होता है। धार्मिक कर्मों से ही व्यक्ति धन संपदा,प्रतिष्ठा, मान, सम्मान सुख शांति भरा जीवन प्राप्त करता है। किसी नगर में एक महान व्यक्ति रहते थे। वे बहुत ही सच्चे व सरल स्वभाव के थे। ऐसे व्यक्तियों को संत की उपाधी दी जाती है। वे संत व्यक्ति अपना जीवन भक्ति भाव के साथ व्यतीत करते थे । वे प्रतिदिन जप-ध्यान वगैरह करते और मंदिर में प्रभु के दर्शन करते व हमेशा सेवा का भाव रखते थे। वे प्रभु का ध्यान करते रहते थे ।

एक दिन जब वे रात में सो गये तो सोते समय उन्हें स्वप्न आया कि उनकी मृत्यु हो गई है। और वे किसी दुसरे लोक में देवदूत के सामने खड़े है। उस समय देवदूत सब मृत व्यक्तियों से उनके द्वारा किये गये शुभ-अशुभ कार्यों के बारे में जानकारी ले रहा है की आपने क्या अच्छा किया है और क्या बुरा ।कुछ ही देर बाद जब संत की बारी आई तो देवदूत ने उनसे पूछा की अब आप बताएं आपने अपने जीवन में क्या किया है ।आप मुझे आपके द्वारा किये गये सभी कार्यो का ब्योरा दें। और आप मुझे अपने ऐसे कार्य बताएं जिसकी वजह से आपको पुण्य मिला हो।

उस देवदूत की बात सुनकर संत सोच में पड़ गये कि मेरा तो सारा जीवन ही अच्छे कामों में बीता है। अब मैं ऐसा कौन-सा काम बताऊं? कुछ देर सोचने के बाद संत बोले -मैं पांच बार सारे तीर्थों के दर्शन कर चुका हूं।  तब देवदूत बोला – आपने तीर्थयात्रा तो की है पर आपने अपनी इस यात्रा का जिक्र हर किसी व्यक्ति से किया है। इस कारण आपके सारे पुण्य प्रताप नष्ट हो चुके है । इसके अलावा आप कोई और पुण्य या धर्म का कार्य बताएं जो आपने किया हो। देवदूत की बात सुनकर संत को मन मे एक ग्लानि उत्पन्न होने लगी। कुछ देर तक वे सोच में पड़ गये फिर कुछ हिम्मत कर उन्होंने कहा – मैं प्रतिदिन भगवान का ध्यान और उनके नाम का स्मरण करता था।

इस पर देवदूत ने कहा – जब आप प्रभु का ध्यान व जप करते थे और उसी दौरान कोई दूसरा व्यक्ति वहां पहुँच जाता तो आप उसे देखकर अपने इस ध्यान को दिखने के लिये अधिक समय तक जप-ध्यान में बैठे रहते। यह दिखावे का जप-ध्यान होता है । देवदूत की बात सुनकर तो अब संत का हृदय कांपने लगा। और संत ने सोच लिया की अब तो ऐसा लग रहा है की मेरी सारी तपस्या बेकार चली गई। देवदूत ने आगे कहा – यदि कोई और पुण्य का काम किया हो तो आप बताएं?

संत को उस समय अपना ऐसा कोई काम याद नहीं आ रहा था। संत की आंखों में पश्चाताप के आंसू आ गए। तभी उनकी नींद टूट गई। स्वप्न की इस घटना से उन्हें अपने मन में छिपी कमजोरियों को जानने व परखने का मौका मिला। संत ने उसी दिन से सबसे मिलना-जुलना और प्रवचन इत्यादि छोड़ दिए और एकनिष्ठ व एकाग्रता के भाव से प्रभु की साधना में लीन हो गए।  कथा का सार यह है कि धर्म और अध्यात्म के स्तर पर किए गए कार्य भी कई बार प्रदर्शन, नाम और यश आदि सांसारिक कामनाओं में उलझे होते हैं। हम कई बार सांसारिक कामनाओं के लिये ही प्रभु का ध्यान करते है ।पर आप ऐसा ना होने दें आप निःस्वार्थ भाव से प्रभु की आराधना करें भगवान आपके कार्य यू ही बना देगें वो तो इस जगत के पालन हार है ।आप तो सिर्फ निःस्वार्थ भाव से कर्म करें फल देना उनका ही काम है ।

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