रावण की नहीं महादेव की थी सोने की लंका, माता पार्वती के इस अभिशाप के कारण राख हो गई थी लंका

रावण को अपनी सोने की लंका पर बहुत अभिमान था. हनुमान जी ने इस लंका को जलाकर राख कर दिया था. लंका की कहनी बहुत ही रोचक है. दरअसल रावण को लंकपति कहा जाता है. रावण स्वयं को लंकापति कहलाने पर प्रसन्न होता था. उसे लंका से बेहद लगाव था. क्योंकि उसे ऐसा लगता था कि लंका जैसा दूसरा कोई स्थान दोनों लोक में नही है.
भगवान शिव ने बनवाई थी लंका रावण ने लंका नहीं बनाई थी, बल्कि लंका का निर्माण भगवान शिव के कहने पर देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा और कुबेर ने मिलकर समुद्र के मध्य त्रिकुटाचल पर्वत पर इसका निर्माण किया था. त्रिकुटाचल के बारे में कहा जाता है कि त्रि यानि तीन और अकुटाचल यानि पर्वत. यानि लंका का निर्माण तीन पर्वत श्रंखलाओ से मिलकर किया गया था. जिसके पहले पर्वत का नाम सुबेल. सुबह वही स्थान है जहां पर भगवान राम और रावण के मध्य भयंकर युद्ध हुआ था. इस पर्वत के दूसरे भाग को नील कहा जाता है, इसी स्थान पर लंका का महल था. इस पर्वत का सबसे सुंदर भाग सुन्दर पर्वत था जहां पर अशोक वाटिका थी. इस स्थान पर माता सीता को रावण ने रखा था. सुंदर पर्वत से सुंदरकांड नाम पड़ा हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए सुंदरकांड का पाठ किया जाता है. जो सुंदर पर्वत नाम से जुड़ा है. जब भगवान राम ने हनुमान जी को सीता जी का पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी तो इस पूरे अभियान को तुलसीदास ने सुंदरकांड नाम दिया. पार्वती जी की इच्छा भगवान शिव ने की पूरी पौराणिक कथाओं के अनुसार लंका का निर्माण भगवान शिव ने माता पार्वती के लिए कराया था. शिव पुराण में इस कथा का वर्णन मिलता है. कहते हैं कि एक बार भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी भगवान शिव और माता पार्वती से मिलने कैलाश पर्वत पर आए. ठंड के कारण लक्ष्मी जी ठिठुरने लगीं. सर्दी से बचने के लिए उन्हें पूरे पर्वत कोई स्थान नहीं मिला. तब मजाक में लक्ष्मी जी ने माता पार्वती से कह दिया कि आप इस पर्वत पर कैसे जीवन व्यतीत करती हैं? इसके बाद माता पार्वती ने वैकुंठ धाम की यात्रा की, वहां के वैभव को देखकर पार्वती जी ने ठान लिया कि वे भी अपने लिए ऐसा ही महल निर्मित कराएंगी. अपनी इच्छा को उन्होने भगवान शिव के सम्मुख रखा. इसके बाद भगवान शिव ने विश्वकर्मा और कुबेर को बुलवाकर लंका के निर्माण का आदेश दिया. रावण ने छल से प्राप्त की सोने की लंका रावण छल करने में प्रवीण था. एक बार जब वह लंका के ऊपर से गुजर रहा था तो उसे लंका को देखकर लालच आ गया. लंका को प्राप्त करने के लिए उसने ब्राह्मण का रुप लिया और भगवान शिव के पास पहुंच गया. भिक्षा के तौर पर उसने सोने की लंका की मांग रखी. भगवान शिव ने रावण को पहचान लिया लेकिन फिर भी भगवान शिव ने उसे निराश नहीं किया और दान में सोने की लंका रावण को दे दी. पार्वती जी ने क्रोध में दिया ऐसा श्राप, जलकर राख हो गई लंका रावण को दान में लंका देने की बात जब माता पार्वती को हुई तो उन्हें बहुत क्रोध आया और क्रोध में ही उन्होंने कहा कि सोने की लंका एक दिन जलकर राख हो जाएगी. वही हुआ भी. हनुमान जी ने सोने की लंका को जलाकर भस्म कर दिया.
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