गोधूलि बेला : यह समय पूजा पाठ और मांगलिक कार्यों को करने के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है

कई बार आपने सुना होगा गोधूलि बेला या गोधूलि काल। यह समय पूजा पाठ और मांगलिक कार्यों को करने के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। इस समय में जामित्रादि दोषों का नाश हो जाता है। जामित्रादि दोष को कारण जातक को दांपत्य जीवन के सुख से वंचित रहना पड़ सकता है। इसलिए विशेष परिस्थितियों में विवाह आदि की रस्मों-रिवाजों को करने के लिए भी यह समय बहुत अच्छा माना जाता है।

आज के समय में जिसे संध्या समय कहा जाता है पहले के समय में उसे गोधूलि बेला कहा जाता था। गो+धूलि यानि गायों को पैर से उठने वाली धूल। इस समय सभी गाय और अन्य पशु चरने के बाद अपने घर को वापस हो रहे होते हैं। संध्या के कुछ समय पूर्व को गोधूलि बेला कहा जाता है। इस समय सूर्य डूबने वाला होता है और धरती से सूर्य की किरणें धीरे-धीरे पीछ हट रही होती हैं। पूरे आकाश पर पीली हल्की चमकदार सूर्य की किरणें होती हैं। इस समय पक्षी भी अपने घोंसलों को लौट रहे होते हैं, सभी ग्वालेजन और अन्य लोग भी पूरे दिन का कार्य करके घर को लौटते हैं तो यह समय बहुत ही आनंद और उत्साह का होता है, क्योंकि इस समय सभी लोग अपने परिजनों से मिलकर हर्ष से भर उठते हैं। इस बेला को मंगलबेला माना जाता है।

महत्वपूर्ण मांगलिक कार्य जैसे विवाह आदि के लिए निकाले गए वांछित मुहूर्त में जब शुद्ध लग्न नहीं निकलता है तो इस स्थिति में गोधूलि काल को मान्यता दी जाती है। लग्न को दोषों को दूर करने के लिए यह समय बहुत उत्तम माना जाता है।
गोधूलि बेला यानि सूर्यास्त से कुछ देर पहले का समय। इस समय दोनों बेला का मिलन होता है। प्रकृति में एक अलग उल्लास होता है। प्राचीन समय में ऋषि-मुनि इस समय पूजन-वंदन किया करते थे। यह समय ईश्वर के वंदन का होता है। इसके अलावा पहले के समय में संध्या काल में गाय अपने घर को लौट रही होती थी। गाय को आगमन को लक्ष्मी आगमन माना जाता है। गाय में देवी-देवाताओं का वास माना जाता है, इसलिए भी यह समय ईश्वर के ध्यान और प्रार्थना का माना गया है।
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