भीष्म पितामह के अनुसार पति-पत्नी को एक थाली में खाना नहीं चाहिए खाना, पड़ता है दुष्प्रभाव

भारत देश में हर चीज को लेकर कई तरह की मान्यताएं है वही भीष्म पितामह ने अर्जुन को दिए अहम संदेशों में बताया है कि जिस थाली को किसी का पग लग जाए तो उस थाली का वही छोड़ देना चाहिए। भीष्म ने कहा कि खाने के दौरान थाली में बाल आने पर उस थाली का त्याग कर देना चाहिए। बाल आने के पश्चात् भी खाए जाने वाले भोजन से दरिद्रता की संभावनाएं बढ़ती है। भोजन पहले जिस थाली को कोई लांघ कर गया हो ऐसे खाने को नहीं खाना चाहिए। इसे कीचड़ के समान छोड़ देने वाला समझना चाहिए।
साथ ही भीष्म पितामह ने अर्जुन को कहा कि एक ही थाली में भाई-भाई खाना खाए तो वह अमृत के बराबर हो जाता है। ऐसे भोजन से धनधान्य, सेहत तथा श्री की बढ़ोतरी होती है। अर्जुन खुद पांच भाई थे तथा मिलजुल कर एवं साझा कर के खाना खाते थे। लाक्षागृह की घटना के पश्चात् पंडित वेश में जब अर्जुन ने द्रौपदी को स्वयंवर में जीता तो माता कुंती ने उन्हें अनजाने ही आपस में बांट लेने को बोल दिया था। इस तरह द्रौपदी पांचों भाइयों की आत्मा के तौर पर स्थान पाया। भीष्म पितामह ने पति-पत्नी को एक ही थाली में खाना खाने को उतना उचित नहीं माना है। भीष्म के मुताबिक, एक ही थाली में पति-पत्नी खाना खाते हैं तो ऐसी थाली मादक पदार्थों से भरी मानी जाने वाली होती है। संभव हो तो पत्नी को पति के उपरांत खाना खाना चाहिए। ऐसा माना गया है कि इससे घर में सुख बढ़ता है। हम यहां साफ़ कर दें कि भीष्म पितामह की इस बात से कई व्यक्ति इत्तिफाक नहीं भी रख सकते हैं। किन्तु यहां यह बात सिर्फ पौराणिक प्रथाओं के अनुरूप रखी गई है।
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