चैत्र नवरात्र के दौरान इस मंदिर में करें विजयासन माता के दर्शन

मध्य प्रदेश धार्मिक धरोहर के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इस राज्य में कई प्रमुख तीर्थ स्थल हैं। इनमें उज्जैन महाकाल मंदिर, कंदरिया महादेव मंदिर, चतुर्भुज मंदिर, ओंकारेश्वर मंदिर, ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर, हरसिद्धि मंदिर, पार्श्वनाथ मंदिर, भरत मिलाप मंदिर, चौसठ योगिनी मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर आदि प्रमुख हैं। साथ ही मध्य प्रदेश के भोपाल के पास सलकनपुर में विजयासन माता का मंदिर है। इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैली है। देश-दुनिया से श्रद्धालु मां के दर पर मत्था टेकने आते हैं। इतिहासकारों की मानें तो इस मंदिर की स्थापना बंजारों ने की है। यह मंदिर पहाड़ के शीर्ष पर है। इस मंदिर पर पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को एक हजार सीढ़ी चढ़नी पड़ती है। इसके बाद भक्तगण मां के दर्शन करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि मां के दर से कोई भी भक्त खाली नहीं लौटता है। आइए, इस मंदिर के बारे में सबकुछ जानते हैं-  

विजयासन माता

धर्म पंडितों एवं जानकारों की मानें तो विजयासन माता मंदिर की स्थापना और उत्पत्ति के बारे में कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है। इस बारे में स्थानीय प्रकांड पंडितों का कहना है कि श्रीमद् भागवत महापुराण में विजयासन माता के बारे में विस्तार बताया गया है। प्राथमिक साक्ष्य के आधार पर यह कहा जाता है कि चिरकाल में देवलोक से भूलोक पर आसन गिरने से यह धाम विजयासन कहलाया।

कथा

चिरकाल में रक्तबीज नामक दैत्य के आतंक से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। स्वर्ग नरेश का अधिपत्य भी खतरे में आ गया। उस समय सभी देवगण और ऋषि-मुनि ब्रह्म देव के पास गए। उन्होंने भगवान विष्णु के पास जाने को कहा। यह जान सभी देवगण जगत के पालनहार भगवान विष्णु के पास पहुंचे। भगवान विष्णु को पूर्व से रक्तबीज के बारे में जानकारी थी। इसके बावजूद उन्होंने देवताओं से आने का औचित्य पूछा।

उस समय देवताओं ने कहा- हे सर्वज्ञाता! आप सब जानते हैं। रक्तबीज स्वयं को तीनों लोकों का स्वामी मानने लगा है। उसके आतंक से समस्त लोकों में त्राहिमाम मचा हुआ है। आप मार्ग प्रशस्त करें। यह सुन भगवान विष्णु बोले- ये कार्य जगत जननी आदिशक्ति मां पार्वती ही कर सकती हैं। उस समय भगवान विष्णु, ब्रह्मा जी और सभी देवगण भगवान शिव के पास पहुंचें।

भगवान शिव एवं माता पार्वती की वंदना गान के बाद देवगणों ने अपनी व्यथा सुनाई। देवताओं की व्यथा सुन मां पार्वती क्रोधित हो उठीं और तत्क्षण मां काली का रूप धारण कर त्रिदेव से आज्ञा पाकर रक्तबीज को युद्ध के लिए ललकारा। कालांतर में मां काली ने रक्तबीज का संहार किया। उस समय मां के जयकारे से तीनों लोक गूंज उठा। कहते हैं कि विजयश्री पाने के बाद जिस स्थान पर मां को विराजने हेतु आसान दिया गया। वह स्थान विजयासन कहलाया।

मंदिर स्थापना

इतिहासकारों की मानें तो पूर्व काल से विजयासन पर शक्ति स्वरूपा मां पार्वती की पूजा की जाती थी। हालांकि, आधुनिक काल में लगभग 300 साल पहले बंजारों द्वारा मनोकामना पूर्ण होने के बाद विजयासन माता मंदिर का निर्माण कराया गया। मनोकामना पूर्ति हेतु एक कथा प्रचलित है। स्थानीय लोगों का कहना है कि तत्कालीन समय में बंजारे उस स्थान पर अपने पशुओं को चराने हेतु ले जाते थे। इसी स्थान पर बंजारे विश्राम भी करते थे।

एक दिन सभी पशु गायब हो गए। यह देख बंजारे की बुद्धि ही विलुप्त हो गई। उस समय बंजारे पशुओं को ढूंढ रहे थे। तभी बंजारे को एक बालिका मिली। उसने बंजारे को विजयासन स्थान पर मां की पूजा करने की सलाह दी। यह सुन बंजारे ने मां पार्वती की पूजा की। मां की पूजा के पुण्य फल से बंजारे को पशु मिल गए। बंजारे ने यह जानकारी स्थानीय लोगों को दी। तब से बड़ी संख्या में लोग मां की पूजा करने हेतु विजयासन आने लगे। तत्कालीन समय में बंजारों ने विजयासन माता मंदिर का निर्माण करवाया।

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