सुख-समृद्धि के लिए ऐसे करें लड्डू गोपाल की पूजा

कई घरों में लड्डू गोपाल की सेवा और पूजा-अर्चना की जाती है। सुबह स्नान कराने से लेकर रात में शयन कराने तक माना जाता है बिल्कुल एक बच्चे की तरह ही लड्डू गोपाल जी की सेवा की जाती है। माना जाता है कि लड्डू गोपाल जी की विधि-विधानपूर्वक आराधना करने से परिवार में सुख-समृद्धि का वास बना रहता है। ऐसे में आइए जानते हैं लड्डू गोपाल की पूजा विधि।

ज्यादातर घरों में भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप यानी लड्डू गोपाल जी की पूजा-अर्चना की जाती है। हिंदू धर्म में लड्डू गोपाल जी की पूजा करने का विशेष महत्व माना गया है। कहते हैं कि यदि लड्डू गोपाल जी आपसे प्रसन्न हो जाएं, तो आपको जीवन में कई तरह की समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है। साथ ही व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है और धन की समस्या भी दूर होने लगती है।

ऐसे करें पूजा

सुबह उठकर स्नान करने के बाद मंदिर की साफ-सफाई करें। इसके बाद पंचामृत यानी दूध, दही, शहद, गंगाजल और घी मिलाकर, लड्डू गोपाल जी को स्नान कराएं। अब उन्हें साफ-सुथरे वस्त्र पहनाएं।

इस तरह करें शृंगार

माना जाता है कि शृंगार करने से लड्डू गोपाल प्रसन्न होते हैं। इसलिए स्नान कराने के बाद लड्डू गोपाल को सुंदर वस्त्र पहनाएं। इसके बाद उन्हें मोर पंख और मुकुट भी जरूर पहनाएं। साथ ही हाथ में एक बांसुरी रखें।

पढ़ें लड्डू गोपाल जी की आरती

लड्डू गोपाल का श्रृंगार करने के बाद उन्हें माखन मिश्री का भोग लगाएं। और इसके बाद घी का दीपक जलाकर लड्डू गोपाल जी की आरती करें –

बालकृष्ण की आरती

आरती बालकृष्ण की कीजे ।

अपना जनम सफल करि लीजे ।।

श्री यशोदा का परम दुलारा ।

बाबा की अखियन का तारा ।।

गोपिन के प्राणन का प्यारा ।

इन पर प्राण निछावर कीजे ।।

आरती बालकृष्ण की कीजे ।

बलदाऊ का छोटा भैया।

कान्हा कहि कहि बोलत मैया ।।

परम मुदित मन लेत वलैया ।

यह छबि नैनन में भरि लीजे ।।

आरती बालकृष्ण की कीजे ।

श्री राधावर सुघर कन्हैया।

ब्रज जन का नवनीत खवैया।।

देखत ही मन नयन चुरैया ।

अपना सरबस इनको दीजे।।

आरती बालकृष्ण की कीजे।

तोतरि बोलनि मधुर सुहावे ।

सखन मधुर खेलत सुख पावे ।।

सोई सुकृति जो इनको ध्यावे।

अब इनको अपनो करि लीजे।।

आरती बालकृष्ण की कीजे ।

इक्षा प्राप्ति कृष्ण श्लोक

‘कस्तूरीतिलकं ललाटपटले वक्षःस्थले कौस्तुभं

नासाग्रे नवमौक्तिकं करतले वेणुं करे कङ्कणम् ।

सर्वाङ्गे हरिचन्दनं सुललितं कण्ठे च मुक्तावलिं

गोपस्त्री परिवेष्टितो विजयते गोपाल चूडामणिः ॥’

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