हर साल क्यों निकाली जाती है जगन्नाथ रथ यात्रा? जानें इसकी खासियत

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा को रथ महोत्सव और गुंडिचा यात्रा के नाम से जाना जाता है। इस बार जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत 07 जुलाई से हो रही है। शास्त्रों के अनुसार, इस खास अवसर पर भगवान जगन्नाथ की पूजा-अर्चना करने से साधक को जीवन में विशेष फल की प्राप्ति होती है। भगवान जगन्नाथ रथयात्रा के उत्सव को बेहद धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस यात्रा में अधिक संख्या में भक्त शामिल होते हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं कि हर साल जगन्नाथ रथ यात्रा क्यों निकली जाती है और इसकी खासियत के बारे में।

इसलिए निकाली जाती है जगन्नाथ रथ यात्रा
पद्म पुराण की मानें तो एक बार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने नगर देखने की इच्छा जाहिर की। इसके लिए भगवान जगन्नाथ ने सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाया। इस दौरान वह अपनी मौसी के घर भी गए। जहां वह सात दिन तक रुके। मान्यता है कि तभी से हर साल भगवान जगन्नाथ निकालने की परंपरा जारी है।

जगन्नाथ रथ यात्रा की खासियत
भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 पहिये होते हैं। रथ को शंखचूड़ रस्सी से खींचा जाता है। रथ को बनाने के लिए नीम की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है।
इस दिन तीन विशालकाय और भव्य रथों पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र जी और देवी सुभद्रा विराजमान होते हैं। सबसे आगे बलराम जी का रथ चलता है, बीच में बहन सुभद्रा जी होती हैं और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ जी का रथ चलता है।
रथ को बनाने के लिए कील का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, किसी भी आध्यात्मिक कार्य के लिए कील या कांटे का प्रयोग करना अशुभ होता है।
जानकारी के लिए बता दें कि भगवान बलराम और देवी सुभद्रा का रथ लाल रंग और जगन्नाथ भगवान का रथ लाल या पीले रंग का होता है।

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