अक्षय तृतीया का दिन बहुत शुभ माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन लोग मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। इस बार यह पर्व 10 मई को मनाया जाएगा। ऐसा माना जाता है कि जो जातक सच्चे भाव के साथ इस तिथि पर देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं और दान खरीदारी आदि कार्य करते हैं उन्हें अक्षय फलों की प्राप्ति होती है।
अक्षय तृतीया का दिन सनातन धर्म के लिए बेहद खास होता है। इसे दीपावली की तरह ही बहुत शुभ और कल्याणकारी माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन लोग मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। इस बार यह पर्व 10 मई, 2024 को मनाया जाएगा। ऐसा माना जाता है कि जो जातक सच्चे भाव के साथ इस तिथि पर देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं और दान, खरीदारी आदि कार्य करते हैं उन्हें अक्षय फलों की प्राप्ति होती है।
अक्षय तृतीया 2024 कब है ?
अक्षय तृतीया 10 मई, शुक्रवार को प्रात: 4 बजकर 17 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन अगले दिन 11 मई सुबह 2 बजकर 50 मिनट पर होगा। इसके अलावा अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त 10 मई सुबह 5 बजकर 49 मिनट से दोपहर 12 बजकर 23 मिनट तक रहेगा। ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान किए जाने वाले सभी कार्य में सफलता मिलती है। साथ ही धन में वृद्धि होती है।
अक्षय तृतीया 2024 में पूजा कैसे करें ?
- अक्षय तृतीया के दिन माता लक्ष्मी की पूजा के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करें।
- इसके बाद साफ वस्त्र धारण करें।
- इस दिन लाल रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।
- एक वेदी स्थापित पर मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की तस्वीर स्थापित करें।
- गंगाजल प्रतिमा को साफ करें।
- कुमकुम व गोपी चंदन का तिलक लगाएं।
- देवी लक्ष्मी को कमल का फूल और विष्णु जी को पीले फूलों की माला अर्पित करें।
- मखाने की खीर और पंचामृत का भोग लगाएं।
- वैदिक मंत्रों का जाप करें।
- भाव के साथ आरती करें।
- अंत में शंखनाद से पूजा समाप्त करें।
- पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा करें।
- शुभ मुहूर्त को ध्यान में रखते हुए सोना-चादी या फिर अपने क्षमता अनुसार वस्तुएं खरीदें।
मां लक्ष्मी पूजन मंत्र
- पद्मानने पद्म पद्माक्ष्मी पद्म संभवे तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्
- ॐ ह्रीं श्री क्रीं क्लीं श्री लक्ष्मी मम गृहे धन पूरये, धन पूरये, चिंताएं दूरये-दूरये स्वाहा:
भगवान विष्णु पूजन मंत्र
- ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।
- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।