परमात्मा की आह्लादिनी शक्ति हैं मां सीता

पतंजलि ने अपने योगसूत्र में उसकी चर्चा की है। क्लेश पांच हैं। एक है राग। दूसरा द्वेष। तीसरा अविद्या। चौथा अस्मिता। अस्मिता वैसे तो प्यारा शब्द है लेकिन यह मूलत क्लेश है। अस्मिता का सीधा अर्थ होता है गौरव लेकिन गौरव कब अहं में बदल जाए कहना मुश्किल है। पांचवां क्लेश है जिजीविषा। मां सीता का स्मरण स्वाभाविक क्लेश को मिटाने वाला है।

स्वामी विवेकानंद जी का कथन है-राम कई हो सकते हैं, पर सीता एक ही होती हैं। राम मत्स्य भी हो सकते हैं, राम कच्छप भी हो सकते हैं, राम नरसिंह भी हो सकते हैं। वामन भी हो सकते हैं, परशुराम भी हो सकते हैं। कृष्ण, बुद्ध, कल्कि हो सकते हैं। सीता एक ही हैं। वाल्मीकिजी ने बहुत स्पष्ट कहा, ‘सीताया: चरितं महत्।’ मेरी रामकथा में किसी का चरित महत् है तो वह सीता का ही है। उधर, तुलसीदास ने सबसे पहले ‘सीता’ शब्द का प्रयोग मंगलाचरण में किया…’सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ।।’

वहां सीता-राम दोनों को जोड़कर दोनों की कथा है। यद्यपि राम और सीता एक ही है। मंगलाचरण के बाद स्वतंत्र रूप में सीता की वंदना तुलसी ने ‘मानस’ में की है… उद्भववस्थितिसंहारकारिणीम्। क्लेशहारिणीम्। सर्वश्रेयस्करी सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्।। कैसी है ये मां? संसार को प्रगट करनेवाली, पैदा करनेवाली; फिर पालन करने वाली। और, पालन करते-करते जो अनावश्यक वस्तु जुड़ जाती है तो उसका संहार करने वाली है।

फिर दूसरा उसका लक्षण बताया ‘कलेशहारिणीं’; कौन हैं सीता? क्लेश को हरने वाली। फिर तीसरी बात लिखी सर्व कल्याण करने वाली। जगत में कल्याण की जितनी परिभाषाएं होंगी, वो सब करने वाली। सबका मंगल करनेवाली। ‘नतोऽहं रामवल्लभाम्।’ तुलसी कहते हैं, मैं उनको प्रणाम करता हूं। किस सीता को? ‘रामवल्लभाम्।’ रामप्रिया; राम को जो अत्यंत प्रिय हैं। मां प्रगट करती है, पालन करती है। खेलते-खेलते बच्चे के शरीर पर गंदगी लग गई हो तो उसको मिटानेवाली भी मां ही होती है। सीता जी में माता के ये तीनों लक्षण हैं।

सीता तो जगदंबा हैं, आह्लादिनी शक्ति हैं परमात्मा की। दूसरी बात, सीता क्लेशहारिणी है। हम बोलते हैं कि हमारे जीवन में क्लेश बहुत है। क्लेश यानी कष्ट। लेकिन आध्यात्मिक रूप में जो क्लेश है, पतंजलि ने अपने योगसूत्र में उसकी चर्चा की है। क्लेश पांच हैं। एक है राग। दूसरा द्वेष। तीसरा अविद्या। चौथा अस्मिता। अस्मिता वैसे तो प्यारा शब्द है, लेकिन यह मूलत: क्लेश है। अस्मिता का सीधा अर्थ होता है गौरव, लेकिन गौरव कब अहं में बदल जाए, कहना मुश्किल है। पांचवां क्लेश है जिजीविषा। मां सीता का स्मरण स्वाभाविक क्लेश को मिटाने वाला है।

‘मानस’ में जो प्रधान पात्र हैं, उनका श्रेय (कल्याण) प्रत्यक्ष या परोक्ष सीता ने ही किया है। सबसे पहले ‘मानस’ में एक बड़ा पात्र आता है सती का। सती ने सीता का रूप लिया, आप जानते हैं। सती ने सीता का वेश लिया, उसके कारण बुद्धि का श्रद्धा में परिवर्तन हुआ। सबसे पहले सुग्रीव का श्रेय सीता ने किया है। सुग्रीव को देखकर रावण द्वारा अपहृत जानकी अपने वस्त्र, अलंकार सुग्रीव पर फेंकती हैं। यह उसके श्रेय का श्रीगणेश है। रावण का श्रेय भी जानकी द्वारा ही हुआ। अंगद का श्रेय भी मां जानकी ने किया।

हनुमानजी पर तो मां बरस पड़ी हैं। सबसे बड़ा हनुमानजी का श्रेय यह किया कि तुम पर राम बहुत प्रेम करेंगे। कुंभकर्ण का श्रेय किसने किया? सीता के स्मरणमात्र से पता न लगे, ऐसे कुंभकर्ण का श्रेय किया। तो सर्व का श्रेय करने वाली सीता हैं। औरों का श्रेय तो किया ही, रामजी का श्रेय भी सीता ने ही किया है। सती चुक गईं लेकिन सीता का वेश लिया। आध्यात्मिक फायदा हो गया। सीता का वेश लेने के कारण जो खोखली बौद्धिकता थी, वह समाप्त हो गई और श्रद्धा प्रकट हो गई। शरणागत श्रद्धा का जन्म हुआ तो यह श्रेय।

सुग्रीव का जो चरित्र है, वह प्रसंशनीय नहीं माना गया ‘रामचरितमानस’ में। लेकिन सबसे पहले सुग्रीव का श्रेय किया है तो सीता ने। इसी सुग्रीव को देखकर रावण के द्वारा अपहृत जानकी अपने वस्त्र, अलंकार सुग्रीव पर फेंकती है। यह उसके श्रेय का श्रीगणेश है। सुग्रीव पर ही क्यों ड़ाले? वहीं से उसके कल्याण का आरंभ हुआ। सीता कहती हैं, मैंने पार्वती को प्रार्थना की तो उन्होंने मुझे केवल एक फूल की माला दी। लेकिन आज मैं सुग्रीव को मेरे महत्व के वस्त्र, अलंकार प्रसन्नता से डालती हूं। रावण का श्रेय किससे हुआ? वह सीता का भगत बना, इसलिए उसका श्रेय हुआ :

एहि के हृदयं बस जानकी

जानकी उर मम बास है।

मम उदर भुजन अनेक लागत

बान सब कर नास है।।

रावण का श्रेय भी जानकी के द्वारा ही हुआ। कुंभकर्ण का श्रेय किसने किया? कुंभकर्ण ने सीता का ही स्मरण किया। तो सर्व का श्रेय करनेवाली सीता है। राम का श्रेय भी सीता ने ही किया। यह ‘मानस’ में कथा नहीं है। रावण नहीं मरता, तब राम दुर्गापूजा करते हैं। परम शक्ति ने ही भगवान राम को जिताया। यह शक्ति सीता ही तो हैं। क्लेश हरनेवाली, सर्व का श्रेय करने वाली, उद्भवस्थितिसंहार करने वाली जो सीता हैं, उसको तुलसी मंगलाचरण में कहते हैं, मां, तुम्हें प्रणाम करता हूं; मैं तुम्हें नमन करता हूं।

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