क्या कहता है कालसर्प योग, इससे इतना डर क्यों?

takshak1-1439981326-300x214ज्योतिषाचार्य- प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में सुख के साथ-साथ दुख के पल भी अवश्य आते हैं, जो कि कभी-कभी अप्रत्याशित रूप से परिवर्तन लाने वाले व असहनीय रूप से कष्टकारी भी हो सकते हैं। ऐसे में बुरी तरह से हताश व्यक्ति ज्योतिषी के पास जाकर अपनी समस्या का समाधान पाना चाहता है और साथ ही यह भी पूछता है कि उसके दुख की घड़ी कब समाप्त होगी? किंतु अक्सर देखने में आता है कि ज्योतिषी उस व्यक्ति को आैर अधिक डराकर ग्रह-शांति के नाम पर बड़ी धनराशि खर्च करने को कहते हैं। काल-सर्प योग के नाम से कुछ ज्योतिषी लोगों को डरा कर उसकी शांति के लिए नारायण-नागबलि और त्रिपिंडी-श्राद्ध जैसे खर्चीले उपाय बताते हैं।

जन्म कुंडली में राहु-केतु के मध्य में सभी ग्रहों के आ जाने को कुछ ज्योतिषी काल-सर्प योग की संज्ञा देते हैं किन्तु वास्तविकता यह है कि काल-सर्प योग का ज्योतिष के किसी प्रामाणिक शास्त्रीय ग्रन्थ में वर्णन है ही नहीं! बृहत् पराशर होरा-शास्त्र, बृहत् जातक, सारावली, फलदीपिका, जातक-पारिजात, सर्वाथचिन्तामणि, जैमिनी-सूत्रम् आदि ज्योतिष के प्रामाणिक प्राचीन ग्रंथों में काल-सर्प योग का कोई उल्लेख नहीं मिलता। इसके अतिरिक्त भृगु पद्धति और नाड़ी ज्योतिष की पांडुलिपियों में जहां हजारों जन्मकुंडलियों का संग्रह है वहां भी काल-सर्प योग का कोई उल्लेख नहीं है। काल-सर्प योग की शांति के लिए ज्योतिषी त्र्यंबकेश्वर नामक तीर्थ-स्थल, जो की नागपुर के पास है, में जा कर ‘नारायण-नागबलि’ और ‘त्रिपिंडी-श्राद्ध’ करने को कहते हैं जो कि शास्त्रीय दृष्टि से ‘काम्य श्राद्ध -कर्म’ हैं जो मुख्यतः मानव की अपूर्ण-इच्छा व कामना को पूर्ण करने हेतु उसके पितरों का आशीर्वाद पाने के लिए सम्पन्न की जाने वाली कर्म-कांड की शास्त्रीय विधि है। इन विधियों का काल-सर्प योग से कोई सम्बन्ध नहीं है और न ही इनमे ‘राहु-केतु’ का कोई उल्लेख मिलता है।

वाराणासी की प्रसिद्ध बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के ज्योतिष विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर विनय कुमार पाण्डेय ने इस विषय पर वर्ष 2014 में एक शोध-पत्र लिखा था। उनका यह शोध-पत्र अन्तर्राष्टीय शोध पत्रिका ‘नैसर्गिकी’ में प्रकाशित हो चुका है। प्रोफेसर पाण्डेय ने अपने शोध-पत्र में कालसर्प योग के वज़ूद को सिरे से खारिज कर दिया था। कालसर्प योग को नकारने में बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के सेवानिवृत्त अध्यक्ष प्रोफेसर रामचन्द्र पाण्डेय और ज्योतिष विभाग के वर्तमान अध्यक्ष प्रोफेसर चंद्रमौलि उपाध्याय सहित अनेक बड़े विद्वान ज्योतिषी शामिल हैं।
पिछली सदी के प्रसिद्ध ज्योतिषी स्वर्गीय डॉक्टर बीवी रमन, जो कि रिकॉर्ड 60 वर्ष तक एस्ट्रोलॉजिकल-मैगजीन के संपादक रहे थे, ने भी कालसर्प योग को सिरे से नकार दिया था। इसके अतरिक्त प्रसिद्ध ज्योतिषी केएन राव ने अभी हाल ही में कुछ वर्ष पहले एक बड़े न्यूज चैनल के माध्यम से कालसर्प योग के अंधविश्वास पर करारा प्रहार किया था।
केएन राव के अनुसार भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंग्लैंड की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं मार्गरेट थेचर, अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश आदि अनेक प्रसिद्ध व्यक्तियों की कुंडलियों में राहु-केतु के मध्य में सभी ग्रह थे, जिसे कुछ ज्योतिषी कालसर्प योग की संज्ञा देते हैं, किन्तु फिर भी वह सब अपने जीवन में बड़ी उपलब्धियों को पाने में सफल हुए। अत: राहु-केतु के मध्य ग्रहों की स्थिति किसी व्यक्ति के उत्थान को रोक नहीं सकती, यदि उसकी कुंडली में इसके सम्बंधित योग मौजूद हैं। इसलिए कालसर्प योग नाम की भ्रान्ति, जो की अभी कुछ दशकों से फैलाई जा रही है, से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि इस योग का ज्योतिष के किसी प्रामाणिक ग्रंथ में कोई उल्लेख नहीं मिलता।

 

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