आज भी घर में जब बेटियों का जन्म होता है तो कहा जाता है कि घर में लक्ष्मी आयी है। कोई ये क्यों नहीं कहता कि मेरे यहां सरस्वती जी का प्रादुर्भाव हुआ है? पुरूष प्रधान समाज में बौद्धिक महिलायें पुरुष के अस्तित्व को चुनौती न देने लगे शायद इसलिए बेटियों का सम्बोधन सरस्वती नहीं लक्ष्मी के रूप में किया जाता है।
युग चाहे प्राचीन हो या आधुनिक पूजी स्त्री ही जाती है, दुर्गा हो या लक्ष्मी। समाज में नारी की सहनशक्ति का परीक्षण और अर्थ व शक्ति की पूजा की जाती है। नवरात्रि में स्त्री की शक्ति को पूजा जाता है एंव दीपावली पर महिलाओं के आर्थिक स्वरूप की आराधना की जाती है। यत्र नर्यस्तु पूजन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूजयन्ते सर्वास्त फलाः।। अर्थात-जहां पर स्त्रियों की पूजा होती हैं, महिलाओं का सम्मान होता है, वहां पर देवता निवास करते हैं, जहां ऐसा नहीं होता है वहां सभी यज्ञार्थ क्रियायें व्यर्थ होती हैं। लक्ष्मी-गणेश का दीपावली से क्या है कनेक्शन वैसे तो लगभग हर पूजन में गणेश जी की सर्वप्रथम स्तुति की जाती है। किन्तु दीपावली में गणेश जी का विशेष महात्मय है। आप सोंच रहें होंगे वो कैसे ? लक्ष्मी जी धन की देवी है और उनकी सवारी उल्लू है। उल्लू साधारणतयः मूर्खाें की श्रेणी में आता है, क्योंकि वह जिस मुख से भोजन से करता है उसी से पाखाना करता है। और खास बात है कि उल्लू को दिन में नहीं रात्रि में दिखाई देता है। यानि वो रात्रि चर प्राणी है। इसलिए लक्ष्मी जी रात्रि में विचरण करती हैं। लक्ष्मी की अधिकता होने पर अक्सर लोग विवेक खो देते हैं और धन का दुरुप्रयोग करने लगते हैं। धन का सद्पयोग हो, विकास हो, परोपकार हो इसके लिए सद्बुद्धि का होना आवश्यक है। गणेश जी बुद्धि के देवता हैं, जिनकी दो पत्नियां रिद्धि व सिद्धि और दो पुत्र है शुभ-लाभ हैं। लक्ष्मी जी धन का प्रतिनिधित्व करती हैं एंव गणेश जी बुद्धि व विवेक के प्रतीक हैं। बिना विवेक के लक्ष्मी का शुभ-लाभ नहीं हो सकता। इसी कारणवश दीपावली में लक्ष्मी जी के साथ गणपति की अराधना का विधान है। दीपावली की शुभ रात्रि में धन वृद्धि की कामना के साथ-साथ विवेक की आराधना भी करनी चाहिए। क्योंकि अगर धन आया और विवेक न आया तो लक्ष्मी जी का सद्पयोग नहीं दुरुप्रयोग ही होगा।