प्रो. विजय कुमार सीजी के अनुसार श्रावण मास शिव की उपासना और शिवत्त्व को जानने का विशेष समय है। शिव सृष्टिकर्ता पालनकर्ता और संहारकर्ता हैं। शिव पुराण के अनुसार सृष्टि शिवमय है। श्रावण में शिव की आराधना मनुष्य को मर्यादा में रहकर श्रेष्ठ जीवन जीने की प्रेरणा देती है। शिव का स्वरूप प्राकृतिक संसाधनों के पोषण और संरक्षण का संदेश देता है और वसुधैव कुटुम्बकम् की परिकल्पना को समझाता है।
पराणों के अनुसार श्रावण मास शिव की उपासना तथा शिवत्त्व को जानने का विशेष अवसर है। शिव ही सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता तथा संहारकर्ता कहे गए हैं। शिव पुराण के अनुसार समग्र सृष्टि शिवमय है। यहां शिव के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। शिव का निष्कल स्वरूप ज्योतिर्लिंग तथा सकल रूप कैलाशवासी, पार्वती पति शिव के रूप में जाना जाता है। शिव स्वभाव से सरल और दयालु देवता हैं किंतु वे अनुशासन में कठोर हैं।
श्रावण मास शिव की उपासना से स्वयं को अनुशासित कर इस जीवन और प्रकृति के आनंद को अनुभव करने की प्रेरणा देता है। श्रावण में शिव की विशेष आराधना मनुष्य को उसकी मर्यादा में रहकर श्रेष्ठ जीवन जीने की प्रेरणा देती है। स्वच्छंदता के स्थान पर स्वतंत्रता तथा
शिव का स्वरूप
प्राकृतिक संसाधनों के शोषण करने के स्थान पर उसके पोषण तथा संरक्षण करने का संदेश देती है। शिव का स्वरूप तथा उनका संपूर्ण परिवार, मानव को सांसारिक संकीर्ण वैचारिक परिधि से बाहर निकालकर वसुधैव कुटुम्बकम् की परिकल्पना को समझाता है। उनके परिवार के सदस्य प्रायः विरुद्ध स्वभाव के हैं फिर भी सभी साथ मिलकर रहते हैं। शिव का वाहन नंदी, पार्वती का वाहन सिंह परस्पर शत्रु होकर भी मित्र बनकर रहते हैं।
शिव के गले का सर्प, गणेश के वाहन मूषक का शत्रु है फिर भी वह कभी मूषक की क्षति नहीं करता। इसी प्रकार कार्तिक का वाहन मयूर, शिव के गले में लिपटे हुए सर्प को हानि नहीं पहुंचाता। आज जब परिवार में कलह तेजी से फैल रहा है तब शिव को समझना आवश्यक हो जाता है।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।