सावन श्रद्धा और सनातन धर्म का महत्वपूर्ण पर्व है। यह महीना भक्ति व्रत और आत्मा के जागरण का विशेष अवसर है जिसमें प्रकृति भी भक्तिभाव में लीन हो जाती है। शिव पुराण में सावन को शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ समय बताया गया है। इस महीने ॐ नमः शिवाय का जाप और शिवलिंग पर जल अर्पित करने से विशेष पुण्य मिलता है। यह महीना आत्मनियंत्रण तप का प्रतीक है।
श्रद्धा सनातन धर्म की नींव है और सावन उसका सर्वोच्च पर्व। यह महीना न केवल भक्ति और व्रत का है, बल्कि आत्मा के जागरण और शिव से जुड़ने का विशेष अवसर भी है। सावन में प्रकृति भी मानो भक्तिभाव में लीन हो जाती है। धरती वर्षा से हरी-भरी हो जाती है और भक्त भी इस माह भगवान शिव की कृपा से आत्मिक रूप से पुष्ट होता है। शिव को आशुतोष कहा गया है, जो अल्प भक्ति से भी शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। शिव पुराण, लिंग पुराण और स्कंद पुराण जैसे धार्मिक ग्रंथों में सावन को शिव की आराधना का सर्वश्रेष्ठ समय बताया गया है।
इस महीने जो भी भक्त श्रद्धा के भाव से व्रत रखते हैं, ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करते हैं और शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं, उन्हें विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
भक्ति और तप का प्रतीक
सावन आत्मनियंत्रण, भक्ति और तप का प्रतीक है। श्रद्धालु कठिन तप उपचार और नियमों का पालन कर भगवान शिव को प्रसन्न करते हैं। इस महीने की कांवड़ यात्रा शिव साधना की चरम अभिव्यक्ति है। भक्त गंगाजल भरकर पैदल यात्रा कर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। सावन और शिव का संबंध अत्यंत गहरा है। यह महीना केवल एक ऋतु नहीं, बल्कि शिवत्व से आत्मा के मिलन का सेतु है। यह ऐसा अवसर है जब सृष्टि की सबसे सरल आराधना, सबसे प्रभावी रूप ले लेती है।
भोलेनाथ की महिमा अनंत है और सावन उसका जीवंत उत्सव है। इस महीने में की गई साधना जीवन को न केवल धार्मिकता से भर देती है, बल्कि अंतःकरण को भी शुद्ध करती है। इसलिए सावन को भक्ति, भाव और ब्रह्म की त्रिवेणी कहा जाता है।