ज्योतिषियों की मानें तो वर्तमान समय में गुरु मिथुन राशि में विराजमान हैं। वहीं अक्टूबर महीने में देवगुरु बृहस्पति मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में गोचर करेंगे। इसके बाद दिसंबर महीने में देवगुरु बृहस्पति वक्री चाल चलकर कर्क राशि से निकलकर फिर से मिथुन राशि में गोचर करेंगे।
सनातन धर्म में गुरुवार का दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु संग बृहस्पति देव की पूजा और साधना की जाती है। साथ ही गुरुवार का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को विवाहित महिलाएं सुख और सौभाग्य में वृद्धि के लिए करती हैं। वहीं, अविवाहित लड़कियां शीघ्र शादी के लिए गुरुवार का व्रत रखती हैं।
ज्योतिष भी करियर में सफलता पाने के लिए कुंडली में गुरु ग्रह मजबूत करने की सलाह देते हैं। कुंडली में गुरु मजबूत रहने से जातक को करियर में मनमुताबिक सफलता मिलती है। साथ ही व्यक्ति जीवन में समय के साथ विकास पथ अग्रसर रहता है।
इसके साथ ही गुरु की महादशा में जातक को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। लेकिन क्या आपको पता है कि गुरु की अंतर्दशा कितने साल तक चलती है और बृहस्पति देव को कैसे प्रसन्न करें? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-
देवगुरु बृहस्पति
कुंडली में आठ ग्रह होते हैं। इन्हें दो भागों में बांटा गया है। देवताओं के गुरु बृहस्पति देव को शुभ ग्रह की श्रेणी में रखा गया है। गुरु की कृपा से व्यक्ति सात्विक होता है और धर्म पथ पर चलता है। धनु और मीन राशि के स्वामी देवगुरु बृहस्पति हैं। वहीं, कर्क राशि को देवगुरु बृहस्पति शुभ फल देते हैं। देवगुरु बृहस्पति की कृपा पाने के लिए पीले रंग की चीजों का दान करें। इसके साथ ही गुरुवार के दिन पीले रंग के कपड़े पहनें।
गुरु की महादशा
ज्योतिषियों की मानें तो गुरु की महादशा में सबसे पहले गुरु की अंतर्दशा और प्रत्यंतर दशा चलती है। गुरु की महादशा 16 साल की होती है। इसके बाद शनि की अंतर्दशा चलती है। शनि की अंतर्दशा के बाद क्रमश: बुध, केतु, शुक्र, सूर्य, चंद्र, मंगल और राहु की अंतर्दशा चलती है। गुरु, राहु और केतु की युति पर गुरु चांडाल दोष का निर्माण होता है।
गुरु की अंतर्दशा
गुरु की अंतर्दशा दो साल एक महीने तक चलती है। इस दौरान गुरु की प्रत्यंतर दशा चलती है। इसके बाद शनि, बुध, केतु, शुक्र, सूर्य, चंद्र, मंगल और राहु की प्रत्यंतर चलती है। गुरु की अंतर्दशा में गुरु की प्रत्यंतर के दौरान जातक को मनचाही सफलता मिलती है। वहीं, राहु और केतु की प्रत्यंतर दशा में जातक को जीवन में नाना प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
विष्णु मंत्र
शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्
विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥
ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥
ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु
यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।।
देवानाम च ऋषिणाम च गुरुं कांचन सन्निभम।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।।
रत्नाष्टापद वस्त्र राशिममलं दक्षात्किरनतं करादासीनं,
विपणौकरं निदधतं रत्नदिराशौ परम्।
पीतालेपन पुष्प वस्त्र मखिलालंकारं सम्भूषितम्,
विद्यासागर पारगं सुरगुरुं वन्दे सुवर्णप्रभम्।।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।