परिवर्तिनी एकादशी व्रत का हिन्दू धर्म में बड़ा महत्व है जो भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा में करवट बदलते हैं इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा का विशेष महत्व है। इस साल यह एकादशी 3 सितंबर यानी आज के दिन मनाई जा रही है।
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत सबसे शुभ माना गया है। यह भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पड़ता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा में अपनी करवट बदलते हैं, इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और इसकी व्रत कथा का पाठ करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
हिंदू पंचांग को देखते हुए इस साल परिवर्तिनी एकादशी आज यानी 03 सितंबर को पड़ रही है।
परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा
एक बार राजा युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से भाद्रपद शुक्ल एकादशी के बारे में पूछा। उन्होंने इस व्रत का नाम, विधि और महत्व जानने की इच्छा जताई। मुरलीधर ने बताया कि इस एकादशी को पद्मा या परिवर्तिनी एकादशी भी कहा जाता है। यह सभी पापों को खत्म करती है। इस दिन भगवान विष्णु की वामन रूप में पूजा करने से मनुष्य को तीनों लोकों में सम्मान मिलता है। जो कोई भी यह व्रत करता है, उसे अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। वहीं, इस दिन भगवान विष्णु अपनी करवट बदलते हैं, इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। युधिष्ठिर को यह सुनकर आश्चर्य हुआ और उन्होंने पूछा, ‘प्रभु, आप कैसे सोते और करवट बदलते हैं? आपने राजा बलि को किस तरह वामन रूप में छलकर बांधा था? चातुर्मास में व्रत की क्या विधि होती है?’
तब भगवान कृष्ण ने राजा बलि की कहानी सुनाना शुरू किया। राजा बलि एक बहुत शक्तिशाली असुर था और भगवान का परम भक्त था। वह यज्ञ और दान-पुण्य करता था, लेकिन उसने अपने बल से इंद्रलोक और सभी देवताओं को हरा दिया था। सभी देवता परेशान होकर भगवान विष्णु के पास गए और उनसे मदद मांगी। देवताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण किया। भगवान कृष्ण ने आगे बताया, ‘मैंने वामन रूप में राजा बलि के पास जाकर उनसे दान में तीन पग भूमि मांगी। बलि को लगा कि यह बहुत छोटी सी चीज है, और उन्होंने तुरंत मुझे तीन पग भूमि देने का संकल्प ले लिया’ जैसे ही बलि ने संकल्प लिया, भगवान वामन ने अपना रूप बहुत विशाल कर लिया। एक पग में उन्होंने पृथ्वी को नाप लिया। दूसरे पग में स्वर्गलोक को नाप लिया। जब तीसरे पग रखने की कोई जगह नहीं बची। वामन रूप में भगवान ने राजा बलि से पूछा, ‘अब मैं तीसरा पग कहां रखूं?’
बलि ने विनम्रता से अपना सिर झुका लिया। तब भगवान ने अपना तीसरा पैर राजा बलि के सिर पर रखा, जिससे वे पाताल लोक चले गए। बलि की भक्ति और विनम्रता देखकर भगवान बहुत खुश हुए और उन्होंने बलि को वरदान दिया कि वे हमेशा उनके साथ पाताल लोक में निवास करेंगे। तभी से एक मूर्ति पाताल में और दूसरी क्षीर सागर में स्थापित हुई।
इसके अलावा कान्हा जी ने युधिष्ठिर को बताया कि इसी दिन भगवान करवट बदलते हैं, इसलिए इस दिन उनकी पूजा करना बहुत फलदायी माना गया है। जो लोग श्रद्धा से यह व्रत करते हैं और इस कथा को पढ़ते या सुनते हैं, उन्हें भगवान श्री हरि की कृपा हमेशा के लिए प्राप्त होती है।