गणेश जी सभी बाधाओं परेशानियों और संकटों को दूर करने वाले देवता हैं इस कारण से उन्हें विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। लेकिन केवल इसी कारण से गणपति विघ्नहर्ता नहीं कहलाते बल्कि इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी मिलती है। इस कथा का वर्णन ब्रह्माण पुराण और त्रिपुरा रहस्यम में मिलता है। चलिए जानते हैं इस विषय में।
हिंदू धर्म में किसी भी पूजा-पाठ या धार्मिक कार्य में सबसे पहले गणेश जी को याद किया जाता है, इसलिए वह प्रथम पूज्य देव भी कहलाते हैं। इसके साथ ही गणेश जी को गजानन, एकदंत, लम्बोदर, विनायक, गणपति और विघ्नहर्ता आदि नामों से भी जाना जाता है। हर नाम के पीछे एक खास वजह भी मिलती है। आज हम आपको गणपति जी के विघ्नहर्ता नाम से जुड़ी एक कथा बताने जा रहे हैं।
क्या है पौराणिक कथा?
त्रिपुरा रहस्य ग्रंथ में वर्णिक ‘त्रिपुरासुर के संहार’ की कथा के दौरान गणेश जी का वर्णन भी आता है। कथा के अनुसार, कामदेव की राख से भंडासुर नामक राक्षस की उत्पत्ति हुई, जो एक एक शक्तिशाली राक्षस था। इस राक्षस को हराने के लिए देवी ललिता त्रिपुरसुंदरी ने शक्ति सेना को उत्पन्न किया। तब भंडासुर की सेना के एक दैत्य ने विघ्न यंत्र की रचना की।
यंत्र की खासियत
इस यंत्र को जहां भी स्थापित किया जाता था, वह के आसपास के लोगों की शक्तियां कम होने लगती थीं। दैत्य ने उस यंत्र को शक्ति सेना के बीच रख दिया, जिससे देवी ललिता त्रिपुरसुंदरी की शक्ति सेना अपनी पूरी शक्ति से युद्ध नहीं कर पा रही थी। तब माता ने गणेश जी को प्रकट करती हैं, जो विघ्न यंत्र को खंडित करने का काम करते हैं। इस कारण से गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है।
इसलिए कहा जाता है विघ्नराज
गणेश जी को विघ्नराज भी कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती की हंसी से ‘मम’ नामक एक असुर पैदा हुआ। उसने तप और दैत्य शक्तियों के बल पर ममासुर ने देवताओं को कैद करना शुरू कर दिया। सभी देवताओं ने परेशान होकर गणेश जी से सहायता की मांग की। गणेश जी ने देवताओं की विनती स्वीकार की और गणेश जी विघ्नराज रूप में प्रकट हुए। उन्होनें ममासुर को युद्ध में हराकर सभी देवताओं को मुक्त करवाया। तभी से गणेश जी विघ्नहर्ता कहलाने लगे।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।