जयपुर रियासत में करीब 200 साल तक शासन के दौरान अंग्रेज अफसरों और उनकी मेमों को जयपुर खूब भाया। यह शहर उनका पसंदीदा स्थान बना रहा। सी-स्कीम के मॉजी का बाग स्थित रेजीडेंसी, सिविल लाइन्स के बंगलों में अंग्रेज अफसर अपनी मेमों व बच्चों के साथ रहते थे।
वर्ष 1821 में रेजीडेंट स्टुवर्ड ने क्रिकेट खेलने के लिए रेजीडेंसी में क्रिकेट मैदान बनवा दिया। खेल के बाद थकान मिटाने आराम कुर्सियों पर बैठते तब उनकी पत्नियां उनके लिए चाय, बिस्कुट व केक परोसकर स्वागत करतीं।
जब शहर में कारें नहीं आई थीं, तब अंग्रेज अफसर अपनी मेमों व बच्चों के साथ बग्घियों और हाथियों पर बैठकर शहर घूमने के लिए निकलते थे। तीज और गणगौर मेलों में शामिल होते।
फागण में चंग और ढप की धमाल को देखने रेजीडेंसी से बड़ी चौपड़ तक आ जाते। अंग्रेज अफसरों को शिकार खेलने और चौगान स्टेडियम में हाथियों की लड़ाई, आतिश की घुड़दौड़ में विशेष दिलचस्पी रही। बैंड वादन के लिए ब्रिटेन से बैंड मास्टर मिस्टर ब्रोकर और फिलिप्स को जयपुर बुलाया और अंग्रेजी संगीत सुनते थे।
बैंड मास्टर फिलिप को निदेशक म्यूजिक बनाया गया। वह अपने परिवार के साथ चर्च रोड पर आर्मी के बंगले में रहता था। सवाई राम सिंह द्वितीय व माधोसिंह का कर्नल टीएच हैंडले से गहरा दोस्ताना रहा। राम सिंह ने तो अपनी वसीयत पर हैंडले के हस्ताक्षर करवाए।
हैंडले की पत्नी को जयपुर से गहरा लगाव रहा। वह हिंदी और जयपुरी बोली को समझने लगी थी। जयपुर को नया स्वरूप देने वाले अभियंता स्वींटन जैकब माधोसिंह के मित्र जैसे रहे। कर्नल गेनीमैन व कैप्टन टॉल बॉट की रियासत के प्रधानमंत्री कांतिचंद्र मुखर्जी से अच्छी दोस्ती थी।
ब्रिटिश इतिहासकार फिलिप गुडल्ला कुछ दिन के लिए आया और बरसों तक जयपुर में रमा रहा। उसने दी लिबरेटर्स पुस्तक में जयपुर को एथेंस, पेरिस और लन्दन के समान सुंदर बताया। 1763 में यूरोप से आए पादरी फादर जोंस टाइफेन्थेलर ने जयपुर की सड़कों को एवं एडविन आर्नोल्ड ने तो जयपुर के साधारण मकानों को भी राजमहल जैसा सुंदर बताया।
कार्टर ब्रेसर ने जयपुर पर एलबम निकाला। वर्ष 1779 में कर्नल पॉलियर ने जयपुर में रहकर वेदों का अध्ययन किया। वेद ग्रंथों का सेट ब्रिटिश संगहालय को दिया। माधोसिंह द्वितीय 1902 में इंग्लैंड गए तब जयपुर गाइड पुस्तक छपवाकर ले गए।
मानसिंह द्वितीय के हवाई जहाज का पायलट कैप्टन गोडविन था। 1857 के गदर में अंग्रेज सेनापति मेजर डबल्यू एफ ईडन की पत्नी और उसके तीन बच्चों को सवाई राम सिंह ने माधो विलास में छुपाकर रखा। 1912 को लार्ड हार्डिंग्स ने अजमेरी गेट पर यादगार का उद्घाटन सोने की चाबी से ताला खोल कर किया।