महिलाएं अखंड सुहाग की कामना से बुधवार (27 जनवरी 2016) को माघ कृष्णा संकष्ट चतुर्थी (तिलकुटा चौथ) का व्रत करेंगी। इस बार यह व्रत तृतीया युक्त चतुर्थी में मनाया जाएगा। ज्योतिषियों के अनुसार इस दिन सुबह 9.56 बजे तक तृतीया तिथि रहेगी। इसके उपरांत चंद्रोदय के समय चतुर्थी होने से इसी दिन महिलाएं चौथ का व्रत करेंगी।
महिलाएं चौथ माता की पूजा कर तिल से बनी हुई सामग्री तिलकुटा, रेवड़ी, गजक आदि का भोग लगाएंगी। ज्योतिषाचार्य चंद्रमोहन दाधीच के अनुसार जयपुर में चंद्रोदय रात्रि 9.10 बजे होगा।
वह अपने देश के राजा के पास गया और बोला, महाराज, हर साल मेरा आवा पक जाता है लेकिन इस बार न जाने क्यों आवा नहीं पका? मेरी पूरी मेहनत बेकार जा रही है। तब राजा ने अपने पंडित को बुलाया और इसका उपाय पूछा। पंडित ने कहा, आवा लगाने से पहले किसी की बलि दी जाए तो इस समस्या का समाधान हो सकता है।
तब राजा ने आदेश दिया और हर बार आवा लगाने से पहले बलि दी जाने लगी। नगर में नियम बना लिया गया कि बारी-बारी से हर परिवार अपना एक सदस्य बलि के लिए भेजेगा। कुछ दिनों बाद एक लड़के की बारी आई।
वह एक बुढिय़ा माई का इकलौता बेटा था, लेकिन राजा का आदेश होने के कारण उसे जाना ही पड़ा। इधर बुढिय़ा माई इस बात से दुखी थी कि उसका इकलौता बेटा बलि के लिए भेजा रहा है। तब उसे एक उपाय सूझा।
किसी नगर में एक व्यक्ति मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करता था। उसके बनाए बर्तन दूर-दूर तक जाते थे।एक बार उसने बर्तन पकाने के लिए आवा (वह जगह जहां आग से मिट्टी के बर्तन पकाए जाते हैं) लगाया। बहुत कोशिश के बाद भी आवा नहीं पका। जब उसे कोई और उपाय नहीं सूझा तो उसने एक फैसला किया।
घर पर उसकी मां चौथ माता से उसकी प्राण रक्षा के लिए प्रार्थना कर रही थी। तभी एक चमत्कार हुआ।उससे पहले जितने भी आवे पके थे उनमें कई दिन लगते थे, लेकिन इस बार यह एक रात में ही पक गया। सुबह आवे का मालिक आया तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ।
उसने आवा खोलकर देखा तो सभी बर्तन पके हुए थे और बुढिय़ा माई का बेटा भी जिंदा व सुरक्षित था। मान्यता है कि उसके बाद नगर के लोगों ने इस व्रत की महिमा स्वीकार की और अब तक जितने भी बालकों की बलि दी गई थी, वे जीवित हो गए।
उस दिन संकष्ट चतुर्थी का व्रत भी था। बुढिय़ा माई ने व्रत की सुपारी और दूब उसकी जेब में रख दी और बोली, भगवान विनायक जी का नाम लेकर आवे में बैठ जाना। वे ही तेरी रक्षा करेंगे। लड़के ने यही किया और सुपारी-दूब लेकर आवे में बैठ गया।
इस कथा का यह भी संदेश हो सकता है कि जो अपने इष्ट में अटूट आस्था रखता है, उसकी भगवान संसार की हर बाधा और संकट की अग्नि में मदद करते हैं। उसके जीवन की रक्षा करते हैं। इसलिए जितना जरूरी व्रत की कथा सुनना है, उसके मर्म पर मनन करना भी उतना ही जरूरी है।
तिलकुटा चौथ व्रत मात्र धार्मिक रूप से ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। चूंकि इस दौरान सर्दी का मौसम होता है। इसलिए शीतकाल में तिल का सेवन स्वास्थ्य के लिए बहुत उत्तम होता है। तिल के साथ गुड़ भी मिलाया जाता है। इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। तिल केश व गुर्दों के लिए अच्छे होते हैं। गुड़ पाचन तंत्र और रक्त को लाभ पहुंचाता है। इस प्रकार तिलकुटा चौथ व्रत स्वास्थ्य और अध्यात्म सहित अनेक लाभ लेकर आता है