रक्षा सूत्र कहलाती है ‘मौली’, ऐसे बांधने से त्रिदेव देते हैं आशीर्वाद

धार्मिक अनुष्ठान हो या पूजा-पाठ, कोई मांगलिक कार्य हो या देवों की आराधना, सभी शुभ कार्यों में हाथ की कलाई पर लाल धागा यानि मौली बांधने की परंपरा है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर मौली यानि कलावा क्यों बांधते हैं? आखिर इसकी वजह क्या है? कलावा यानी रक्षा सूत्र बांधने के वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों महत्व है.

वैदिक परंपरा का हिस्‍सा
रक्षा सूत्र या मौली बांधना वैदिक परंपरा का हिस्सा है. यज्ञ के दौरान इसे बांधे जाने की परंपरा तो पहले से ही रही है, लेकिन इसको संकल्प सूत्र के साथ ही रक्षा-सूत्र के रूप में बांधे जाने की वजह भी है और पौराणिक संबंध भी.  

रक्षा सूत्र का महत्व
ऐसा माना जाता है कि असुरों के दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा था. इसे रक्षाबंधन का भी प्रतीक माना जाता है, देवी लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथों में अपने पति की रक्षा के लिए ये बंधन बांधा था.

मौली का अर्थ
‘मौली’ का शाब्दिक अर्थ है ‘सबसे ऊपर’. मौली का तात्पर्य सिर से भी है. मौली को कलाई में बांधने के कारण इसे कलावा भी कहते हैं. इसका वैदिक नाम उप मणिबंध भी है. शंकर भगवान के सिर पर चन्द्रमा विराजमान हैं, इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है.

कैसी होती है मौली
मौली कच्चे धागे से बनाई जाती है. इसमें मूलत: 3 रंग के धागे होते हैं- लाल, पीला और हरा, लेकिन कभी-कभी ये 5 धागों की भी बनती है , जिसमें नीला और सफेद भी होता है. 3 और 5 का मतलब कभी त्रिदेव के नाम की, तो कभी पंचदेव.

कहां-कहां बांधते हैं मौली
मौली को हाथ की कलाई, गले और कमर में बांधा जाता है. मन्नत के लिए किसी देवी-देवता के स्थान पर भी बांधा जाता है. मन्नत पूरी हो जाने पर इसे खोल दिया जाता है. मौली घर में लाई गई नई वस्तु को भी बांधा जाता है, इसे पशुओं को भी बांधा जाता 

मौली बांधने के नियम
– पुरुषों और अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए.
– विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में कलावा बांधने का नियम है.
– जिस हाथ में कलावा बंधवा रहे हों, उसकी मुट्ठी बंधी होनी चाहिए. दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए.
– मौली कहीं पर भी बांधें, एक बात का हमेशा ध्यान रहे कि इस सूत्र को केवल 3 बार ही लपेटना चाहिए.

मौली करती है रक्षा
मौली को कलाई में बांधने पर कलावा या उप मणिबंध कहते हैं. हाथ के मूल में 3 रेखाएं होती हैं जिनको मणिबंध कहते हैं. भाग्य और जीवनरेखा का उद्गम स्थल भी मणिबंध ही है. इन मणिबंधों के नाम शिव, विष्णु और ब्रह्मा हैं. इसी तरह शक्ति, लक्ष्मी और सरस्वती का भी यहां साक्षात वास रहता है. जब कलावा का मंत्र रक्षा हेतु पढ़कर कलाई में बांधते हैं तो ये तीन धागों का सूत्र त्रिदेवों और त्रिशक्तियों को समर्पित हो जाता है, जिससे रक्षा-सूत्र धारण करने वाले प्राणी की सब प्रकार से रक्षा होती है.

क्‍या कहते हैं शास्‍त्र
शास्त्रों का ऐसा मत है कि मौली बांधने से त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु, महेश और तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है.

मौली का चिकित्सीय पक्ष
कलाई, पैर, कमर और गले में मौली बांधने के चिकित्सीय लाभ भी हैं. शरीर विज्ञान के अनुसार इससे त्रिदोष यानि वात, पित्त और कफ का संतुलन बना रहता है. ब्लड प्रेशर, हार्टअटैक, डायबिटीज और लकवा जैसे रोगों से बचाव के लिए मौली बांधना हितकर बताया गया है.

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