स्कंद पुराण में वेद व्यासजी अनुसार श्रीमद्रामायण की अति दुर्लभ रामकथा आनंद रामायण ही है । आनंद रामायण के सारकांड अनुसार युद्ध में मेघनाद के मारे जाने पश्चात रावण की मां कैकसी ने उसके पाताल में बसे दो भाइयों अहिरावण और महिरावण की याद दिलाई । अहिरावण व महिरावण तंत्र-मंत्र के महापंडित थे तथा मां कामाक्षी के परम भक्त थे । इस विचार पर रावण ने उन्हें श्रीराम व लक्ष्मण का वध करने के लिए कहा । युद्ध में अहिरावण व महिरावण के शामिल होने से विभीषण चिंता में पड़ गए और हनुमानजी को राम-लक्ष्मण की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा । लंका में सुवेल पर्वत पर हनुमानजी ने रामजी की कुटिया के चारों ओर एक घेरा खींचा ताकि कोई वहां प्रवेश न कर सके । जिसके कारण अहिरावण व महिरावण श्रीराम और लक्ष्मण का नाश करने में असफल रहे थे । महिरावण ने विभीषण का रूप धारण करके रामजी की कुटिया में प्रवेश किया । राम व लक्ष्मण जिस शिला पर सो रहे थे महिरावण उस शिलासहित उन्हें पाताल में ले गए । आनंद रामायण के सारकांड अनुसार विभीषण को राम-लक्ष्मण की जान की चिंता सताने लगी अतः विभीषण की सलाह पर हनुमानजी महिरावण का पीछा करते हुए पक्षी का रूप बदलकर निकुंभिला नगर आए ।
लंका स्थित कपोत-कपोती पक्षियों के बीच में हुए संवाद से हनुमानजी को जब यह पता चला कि, अहिरावण व महिरावण राम-लक्ष्मण को देवी के सामने बलि देने के लिए रसातल में ले गए हैं । हनुमानजी को रसातल के प्रवेशद्वार पर मकरध्वज मिला । प्रश्नोत्तर में, दोनों का पितापुत्र का नाता निकलता है । मकरध्वज हनुमान को सुझाते हैं कि, रूप बदलकर कामाक्षी कें मंदिर में जा कर बैठ जाएं । तब हनुमानजी मधुमक्खी का वेश धारण कर मां कामाक्षी की शरण में गए । हनुमानजी ने मां कामाक्षी का वंदन कर उनसे पुछा कि “हे मां क्या आप श्रीराम की बलि चाहती हैं?” इस पर मां कामाक्षी ने कहा कि वो अहिरावण व महिरावण की बलि चाहती हैं ।
अपनी इच्छा प्रकट करने के बाद मां कामाक्षी ने हनुमानजी को राम-लक्ष्मण की सुरक्षा का रास्ता सुझाया । हनुमान ने उसी वेश में यह युक्ति श्रीराम के कानों में कह दी । आनंद रामायण के सारकांड अनुसार सुबह वाद्यों की ध्वनि में महिरावण राम-लक्ष्मण को मां कामाक्षी के मंदिर लेकर आया । तब हनुमानजी ने देवी रूप धारणकर व देवी का स्वर निकालकर महिरावण से कहा कि, पूजा झरोखे से की जाएं । इसके पश्चात महिरावण ने देवी को बहुत से उपचार अर्पण किए, तथा राम-लक्ष्मण को भी झरोखे से भीतर छोडा । मुर्हूत आने पर महिरावण ने राम को अपना सिर बलिवेदी पर रखने को कहा । परंतु श्रीराम ने कहा कि वह क्षत्रिय और उन्होंने किसी के आगे कभी सिर नहीं झुकाया है । इसलिए अगर महिरावण उन्हें ऐसा करके दिखाएं तो शायद वो ऐसा कर सकें ।
महूर्त के कारण महिरावण ने अपना सिर बलि देने के स्थान पर रख दिया । तब हनुमान अपने वास्तविक रूप में आए और उन्होंने बलि देने के लिए रखे खड्ग से महिरावण का सिर धड़ से अलग कर दिया और भगवान श्री राम और लक्ष्मण को पाश से मुक्त कर दिया । तदनंतर राम लक्ष्मण ने मिल कर, राक्षसों का संहार शुरु किया । अतः हनुमानजी ने पक्षी, मधुमक्खी व देवी का रूप धारण कर महिरावण के साथ छल करके प्रभु श्रीराम व लक्ष्मण की जान बचाई ।