वाराणसी-लखनऊ नेशनल हाईवे से 8 किलोमीटर दूर गोमती नदी के किनारे स्थापित ‘धोपाप धाम’ में हर साल गंगा दशहरे के मौके पर हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ जमा होती है। बताया जाता है कि इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने रावण वध के बाद अपने ऊपर लगे ब्रह्म-हत्या के पाप को यहां धोया था। 
क्या है धोपाप धाम का इतिहास
– इस धाम के पुजारी पंडित राम अक्षयवर उपाध्याय बताते हैं, “गोमती के तट पर बसे ‘धोपाप धाम’ पर भगवान राम का प्राचीन मंदिर है। यहां एक बार जिसके पांव पड़ जाएं, उसके जन्म-जन्मान्तर के सारे पाप धुल जाते हैं।”
– “इस तीर्थ स्थल के नाम के पीछे भी एक कहानी है। धोपाप धाम का वर्णन पद्म पुराण (पंकज पुराण) में किया गया है। जिसके मुताबिक जब त्रेता युग में सीता का हरण करने वाले रावण का वध कर राम अयोध्या लौटे थे, तब आमजन तो खुश थे, लेकिन ब्राह्मण और संत समाज में रावण वध का दुख भी व्याप्त था।”
– “अयोध्या के कुलगुरु वशिष्ठ ने राम से कहा था कि रावण पापी जरूर था, लेकिन उसके जैसा वेदों का ज्ञाता सम्पूर्ण धरती पर दूसरा कोई न था। वह परम तपस्वी ब्राह्मण विश्वशर्वा का पुत्र भी था। इसलिए उनसे ब्राह्मण हत्या का पाप हुआ है। यह बात जानकर भगवान राम को अत्याधिक ग्लानि हुई थी।”
राम ने धोए थे अपने पाप
– ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति के लिए गुरु वशिष्ठ ने राम को गोमती के पावन जल में डुबकी लगाने के लिए इस पुण्य स्थल का सुझाव दिया था। ऐसा माना जाता है कि ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को यहां पर पर राम ने स्नान कर अपने ऊपर लगे ब्रह्महत्या के पाप को धोया था। तब से यह पावन स्थली धोपाप धाम के नाम से विख्यात हो गई। तब से ही इस तिथि को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है।
– पंडित अक्षयवर उपाध्याय के मुताबिक अगर ग्रहण स्नान काशी में, मकर संक्रान्ति स्नान प्रयाग में, चैत्र मास नवमी तिथि का स्नान अयोध्या में या ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशहरा तिथि का स्नान धोपाप धाम में कर लिया जाए, तो अन्य किसी जगह जाने की आवश्यकता नहीं है। बस इतने से ही मनुष्य को सीधे बैकुण्ठ की प्राप्ति होती है।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।