श्री राम अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र थे। श्री राम का विवाह राजा जनक की पुत्री देवी सीता के साथ हुआ। श्री राम तथा देवी सीता रामायण के प्रमुख पात्र थे। श्री राम को विष्णु तथा माता सीता को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। यह बात तो हम सब जानते हैं कि श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है।इस बात से तो सब वाकिफ होते हैं कि विवाह के मौके पर मुँह दिखाई की एक रस्म होती है। इस रस्म में पति द्वारा अपनी पत्नी को कोई भेंट दी जाती है। भगवान श्री राम ने भी मुँह दिखाई की रस्म में देवी सीता को एक उपहार दिया। भगवान श्री राम ने एक ऐसा उपहार देवी सीता को दिया जिसे पाने के बाद देवी सीता बहुत प्रसन्न हुई।
भगवान श्री राम तथा देवी सीता के विवाह के बारे में रामायण में एक बहुत ही सुन्दर प्रसंग आया है। रामायण में यह बताया गया है कि श्री राम तथा देवी सीता की पहली मुलाकात वाटिका में हुई। देवी सीता देवी माँ गौरी की पूजा करने के लिए वाटिका में जाती हैं और भगवान राम भी वाटिका में अपने गुरु विश्वामित्र जी के लिए फूल लेने पहुँच जाते हैं। वहां दोनों एक दूसरे को पहली बार देखते हैं तथा एक दूसरे की तरफ मोहित हो जाते हैं।
चूँकि देवी सीता अपनी प्रथम मुलाकात से ही श्री राम को मन ही न पसन्द करने लगती हैं, इसलिए वह माँ गौरी से श्री राम को पति के रूप में पाने की प्रार्थना करती हैं। माँ गौरी देवी सीता की मन की बात जान जाती हैं और कहती हैं- ‘मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर सावरो। करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ॥’ और देवी सीता की प्रार्थना पूरी होती है तथा उन्हें श्री राम पति के रूप में मिल जाते हैं।
श्री राम तथा देवी सीता के विवाह में काफी बाधाएं आती हैं जैसे कि स्वयंवर की शर्त और भगवान राम की कुंडली में मौजूद मंगलिक योग। परन्तु ये बाधाएं इनका विवाह होने से रोक नही पाती। ये बाधाएं अपने आप दूर हो जाती हैं तथा श्री राम का देवी सीता से विवाह हो जाता है। इस विवाह में सभी देवी देवता वेष बदल कर शामिल होने आते हैं।
लेकिन विवाह की सबसे खास बात तब होती है जब विवाह के बाद पहली बार देवी सीता और भगवान राम की मुलाकात होती है। विवाह के बाद मुँह दिखाई की रस्म होती है। इस रस्म में श्री राम द्वारा देवी सीता को दिया गया उपहार बेहद खास और अमूल्य था।
इस रस्म के दौरान श्री राम ने देवी सीता को कोई भौतिक उपहार नहीं बल्कि एक वचन दिया। इस वचन के अनुसार श्री राम एक पत्नी व्रत का पालन करेंगे। उन्होंने वादा किया कि उनके जीवन में देवी सीता के अलावा कोई अन्य स्त्री नही आएगी। श्री राम ने अपने वचन का जीवन भर पालन किया तथा अपने पास आये अन्य विवाह के प्रस्तावों को कभी स्वीकार नही किया। लेकिन कई अन्य मर्यादाओं का पालन करने के कारण भगवान राम को देवी सीता का त्याग करना पड़ा।
इसी कारण भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है।