भगवान राम ने देवी सीता को मुंह द‌िखाई में द‌िया ऐसा उपहार

व‌िवाह के मौके पर मुंह द‌िखाई की रस्म होती है ज‌िसमें पत‌ि अपनी पत्‍नी को कोई उपहार देता है। भगवान राम ने मुंह द‌िखाई की रस्म में देवी सीता को ऐसा उपहार द‌िया ज‌िसे पाने के बाद देवी सीता की खुशी का ठ‌िकाना न रहा और भगवान राम बन गए मर्यादा पुरुषोत्तम।
भगवान राम का व‌िवाह मार्गशीर्ष महीने में शुक्ल पक्ष की पंचमी त‌िथ‌ि को हुआ था। इस वर्ष यह त‌िथ‌ि 4 द‌िसंबर को है। भगवान राम का व‌िवाह रामायाण का एक अनोखा प्रसंग है ज‌िसके बारे में रामचर‌ित मानस में बड़ा ही सुंदर प्रसंग आया है क‌ि देवी सीता और भगवान राम की पहली मुलाकात वाट‌िका में हुई जब देवी सीता मां गौरी की पूजा करने आती है और भगवान राम गुरू व‌िश्वाम‌ित्र जी के ल‌िए फूल लेने आते हैं। दोनों एक दूसरे को देखकर मोह‌ित हो जाते हैं।
देवी सीता मां गौरी की पूजा करके प्रार्थना करती है क‌ि उन्हें भगवान राम ही पत‌ि रूप में प्राप्त हों। मां गौरी देवी सीता के मन की बात को जानती है और कहती हैं  ‘मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर सावरो। करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ॥’ और देवी सीता को वरदान स्वरूप भगवान राम प‌त‌ि रूप में प्राप्त होते हैं।
व‌िवाह में कई तरह की बाधाएं आती हैं ज‌िनमें स्वयंवर की शर्त और भगवान राम की कुंडली में मौजूद मंगल‌िक योग भी शाम‌िल होता है। लेक‌िन तमाम बाधाएं दूर होती चली जाती है और भगवान राम का देवी सीता के साथ व‌िवाह हो जाता है। इस अद्भुत व‌िवाह में शाम‌िल होने सभी देवी-देवता वेष बदलकर आते हैं। लेक‌िन व‌िवाह की सबसे खास बात तब होती है जब व‌िवाह के बाद पहली बार देवी सीता और भगवान राम की मुलाकात होती है।
व‌िवाह के बाद मुंह द‌िखाई की रस्म होती है। इस रस्म में पत‌ि अपनी पत्नी को कोई उपहार देता है। भगवान राम ने इस रस्म के दौरान देवी सीता को कोई भी भौत‌िक उपहार देने की बजाय एक वचन द‌िया।
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