गोवर्धन पूजा पर इस तरह बनाया जाता है अन्नकूट, है ख़ास महत्व

आप सभी को बता दें कि इस बार गोवर्धन पूजा 8 नवंबर को मनाई जाने वाली है. इस त्यौहार को हर साल दिवाली के दूसरे दिन मनाया जाता है. ऐसे में आप सभी जानते ही होंगे कि गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है और पांच हजार साल पहले यह गोवर्धन पर्वत 30 हजार मीटर ऊंचा हुआ करता था और अब लगभग 30 मीटर ही रह गया है. कहते हैं कि पुलस्त्य ऋषि के शाप के कारण यह पर्वत एक मुट्ठी रोज कम होता जा रहा है क्योंकि उन्होंने इस पर्वत को श्राप दिया था कि यह हर दिन छोटा होता जाएगा. इसी के साथ यह भी कहते हैं कि इस पर्वत को भगवान कृष्ण ने अपनी चींटी अंगुली पर उठा लिया था.

वहीं आप सभी को बता दें कि श्रीगोवर्धन पर्वत मथुरा से 22 किमी की दूरी पर स्थित है और वहां कि पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रीगिरिराजजी को पुलस्त्य ऋषि द्रौणाचल पर्वत से ब्रज में लाए थे वहीं दूसरी मान्यता यह है कि जब रामसेतुबंध का कार्य चल रहा था तो हनुमानजी इस पर्वत को उत्तराखंड से ला रहे थे, लेकिन तभी देववाणी हुई की सेतुबंध का कार्य पूर्ण हो गया है, तो यह सुनकर हनुमानजी इस पर्वत को ब्रज में स्थापित कर दक्षिण की ओर पुन: लौट गए. आप सभी को बता दें कि गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के ना से भी जानते हैं. ऐसे में 

आइए जानते हैं कैसे बनता है अन्नकूट..

कहते हैं अन्नकूट बनाने के लिए कई तरह की सब्जियां, दूध और मावे से बने मिष्ठान और चावल का प्रयोग किया जाता है और अन्नकूट में ऋतु संबंधी अन्न-फल-सब्जियों और फलों का प्रसाद बनाया जाता है. ऐसे में गोवर्धन पूजा में भगवान कृष्ण के साथ धरती पर अन्न उपजाने में मदद करने वाले सभी देवों जैसे, इन्द्र, अग्नि, वृक्ष और जल देवता की भी आराधना करते हैं और वहीं गोवर्धन पूजा में इन्द्र की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि अभिमान चूर होने के बाद इन्द्र ने श्री कृष्ण ने क्षमा मांगी और श्री कृष्ण ने आशीर्वाद स्वरूप गोवर्धन पूजा में इन्द्र की पूजा को भी मान्यता दे दी थी.

 

शनिदेव की कृपा दृष्टि
इस दिवाली पूजा में पढ़ें यह मंत्र और आरती,

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