मकर संक्रांति पर इस परम्परा के अनुसार बनाई जाती है हर साल खिचड़ी

हर साल मनाया जाने वाला मकर संक्रांति का त्यौहार इस बार भी धूम धाम से मनाया जाने वाला है. ऐसे में इस साल मकर संक्रांति पर खास संयोग बन रहा है. आप सभी को बता दें कि मकर संक्रांति का योग इस बार 2 दिन बन रहा है और इस बार मकर संक्रांति पर सर्वार्थसिद्धि योग बन रहा है. आप सभी इस बात से वाकिफ ही होंगे कि इस बार मकर संक्रांति 14 और 15 दोनों दिन मनाई जाने वाली है. ऐसे में इस दिन खिचड़ी बनाने का विशेष महत्व होता है. बहुत कम लोग जानते हैं कि खिचड़ी बनाने की परम्परा कहाँ से आई? तो आइए आज हम आपको बताते हैं इस परम्परा के बारे में. 

कैसे शुरू हुई यह परंपरा – मकर संक्रांति को खिचड़ी बनने की परंपरा को शुरू करने वाले बाबा गोरखनाथ थे. मान्यता है कि खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण भोजन बनाने का समय नहीं मिल पाता था. इस वजह से योगी अक्सर भूखे रह जाते थे और कमजोर हो रहे थे.योगियों की बिगड़ती हालत को देख बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी. यह व्यंजन पौष्टिक होने के साथ-साथ स्वादिष्ट था. इससे शरीर को तुरंत उर्जा भी मिलती थी. नाथ योगियों को यह व्यंजन काफी पसंद आया. बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा.

झटपट तैयार होने वाली खिचड़ी से नाथ योगियों की भोजन की परेशानी का समाधान हो गया और इसके साथ ही वे खिलजी के आतंक को दूर करने में भी सफल हुए. खिलजी से मुक्ति मिलने के कारण गोरखपुर में मकर संक्रांति को विजय दर्शन पर्व के रूप में भी मनाया जाता है. इस दिन गोरखनाथ के मंदिर के पास खिचड़ी मेला आरंभ होता है. कई दिनों तक चलने वाले इस मेले में बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और इसे भी प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है.

मकर संक्रांति को बनाते हैं खिचड़ी और तिल के पकवान
मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व

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