सरस्वती, लक्ष्मी एवं गंगा का विवाद

आप सबको वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें। पिछले वर्ष इस अवसर पर हमने देवी सरस्वती पर एक लेख प्रकाशित किया था जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं। इस वर्ष हमने सोचा देवी सरस्वती पर कोई विशेष जानकारी लेकर आपके सामने आएं। तो आज हम आपको देवी सरस्वती और देवी गंगा के बीच हुए एक विवाद के विषय में बताएँगे। इस कथा का विवरण कुछ पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। एक कथा के अनुसार भगवान विष्णु की तीन पत्नियाँ – लक्ष्मी, गंगा एवं सरस्वती थी। तीनों सदा नारायण को प्रसन्न रखने का प्रयास करती थी ताकि उनका विशेष प्रेम उन्हें प्राप्त हो सके। एक बार देवी गंगा के प्रति श्रीहरि का अधिक प्रेम देख कर देवी लक्ष्मी एवं माँ सरस्वती को ईर्ष्या हुई। इसपर लक्ष्मी जी ने तो कुछ नहीं कहा किन्तु सरस्वती जी ने इस पक्षपात के लिए भगवान विष्णु को खूब खरी-खोटी सुनाई। लक्ष्मी ने उन्हें रोकने का प्रयास किया किन्तु क्रोध के कारण वे उसी प्रकार नारायण को उपालम्भ देती रही। साथ ही उन्होंने देवी गंगा को भी दुर्वचन कहे। इस कलह से तंग आकर भगवान विष्णु कुछ समय के लिए वैकुण्ठ से बाहर चले गए।

नारायण को इस प्रकार बाहर जाते देख कर सरस्वती जी को अत्यंत दुःख हुआ लेकिन इसका कारण भी उन्होंने देवी गंगा को ही समझा। उसी क्रोध में वे गंगा पर प्रहार करने को उद्धत हुई। ये अनर्थ देख कर लक्ष्मी जी से रहा नहीं गया और वे उन दोनों के बीच में आ गयी। उन्होंने दोनों को समझा बुझा कर शांत करने का प्रयास किया। इससे देवी गंगा तो शांत हो गयी किन्तु सरस्वती का क्रोध और बढ़ गया। इस प्रकार बीच में आने के कारण उन्होंने क्रोध में आकर लक्ष्मी को वृक्ष हो जाने का श्राप दे दिया। सरस्वती के श्राप के प्रभाव से देवी लक्ष्मी तुरंत तुलसी के पौधे में बदल गई। निर्दोष लक्ष्मी को इस प्रकार श्राप का भाजन बनते देख अब गंगा को भी क्रोध आया। उन्होंने सरस्वती को नदी बनकर भूतल पर प्रवाहित होने का श्राप दे दिया। इससे दुखी सरस्वती ने भी गंगा को नदी बनने और मानवों की अस्थियाँ ढोने का श्राप दे दिया। जब भगवान विष्णु वापस आये तो उन्हें सरस्वती और गंगा के श्राप का पता चला। साथ ही लक्ष्मी को पौधे में बदला देख उन्हें असीम दुःख हुआ। देवी लक्ष्मी के शांत स्वाभाव और सूझ-बुझ के कारण उन्होंने उन्ही को अपनी पत्नी के रूप में अपने पास रखना उचित समझा। ये सोच कर कि ऐसी स्थिति पुनः आ सकती है, उन्होंने देवी गंगा और देवी सरस्वती को त्याग देने का निश्चय किया। जब दोनों को ये पता चला तो उन्होंने भगवान विष्णु से क्षमा याचना की। तब श्रीहरि ने कहा कि गंगा पृथ्वी पर मनुष्यों के पापों की धोने के लिए अवतरित होंगी। साथ ही वे अंश रूप में उनके चरणों में, परमपिता ब्रह्मा के कमंडल में एवं महादेव की जटाओं में भी रहेंगी। सरस्वती भी उनके साथ भूतल पर ही बहेंगी और साथ ही अंश रूप में उनके साथ रहेंगी। केवल देवी लक्ष्मी ही पूर्ण रूप से उनकी पत्नी बनकर बैकुंठ में निवास करेंगी। साथ ही उन्होंने शालिग्राम का रूप लेकर देवी लक्ष्मी के तुलसी रूप का भी पाणिग्रहण किया। कहा जाता है कि तब से ही गंगा और सरस्वती एक दूसरे के श्राप के कारण पृथ्वी पर नदी के रूप में बह रही हैं। देवी सरस्वती का श्राप समाप्त हो चुका है इसी कारण वे वापस अपने लोक लौट चुकी हैं और देवी गंगा भी कलियुग के अंत तक अपना श्राप पूरा कर पूर्ण रूप से लुप्त हो जाएगी। किन्तु आज भी प्रयाग में गंगा और सरस्वती के संगम को देखा जा सकता है। 

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