होलिका पूजन विधि
प्रदोष काल में ही होली दहन करना शुभ होता है। पूजा के समय पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठना चाहिए। साथ ही माला, रोली, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, पांच प्रकार के अनाज में गेहूं की बालियां और साथ में एक लोटा जल पूजा में जरूर रखना चाहिए। जल लेकर होलिका के चारों ओर परिक्रमा करनी चाहिए उसके बाद होली दहन करना चाहिए।
भद्रा काल में न करें होलिका पूजन और शुभ कार्य
भद्रा काल में पूजा और शुभ कार्य करना अशुभ होता है। इस बार भद्राकाल 20 मार्च की सुबह 10:45 बजे से रात 8:58 बजे तक भद्रा काल रहेगा।
होली दहन का शुभ मुहुर्त
पूर्णिमा तिथि
आरंभ- 20 मार्च- 10:44
समाप्त- 21 मार्च- 07:12
होलिका दहन
रात्रि 8.58 से रात 12.05 बजे तक।
जानें क्यों होता है आठ दिन का होलाष्टक?
प्रह्लाद की भक्ति का उनके पिता हिरण्यकश्यपु बहुत विरोध करते थे। प्रह्लाद को भक्ति से विमुख करने के उनके सभी उपाय जब निष्फल होने लगे तो उन्होंने प्रह्लाद को फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी को बंदी बना लिया और मृत्यु हेतु तरह-तरह की यातनाएं देने लगे। प्रह्लाद विचलित नहीं हुए। इस दिन से प्रतिदिन प्रह्लाद को मृत्यु देने के अनेकों उपाय किए जाने लगे, पर वे हमेशा बच जाते। इसी प्रकार सात दिन बीत गए। आठवें दिन अपने भाई हिरण्यकश्यपु की परेशानी देख उनकी बहन होलिका (जिसे ब्रह्मा द्वारा अग्नि से न जलने का वरदान था) ने प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में भस्म करने का प्रस्ताव रखा और होलिका जैसे ही अपने भतीजे प्रह्लाद को गोद में लेकर जलती आग में बैठी, वह स्वयं जलने लगी और प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। तभी से भक्ति पर आघात हो रहे इन आठ दिनों को होलाष्टक के रूप में मनाया जाता है।
होली की पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार फाल्गुन शुक्लपक्ष अष्टमी होलाष्टक तिथि का आरंभ है। इस तिथि से पूर्णिमा तक के आठों दिनों को होलाष्टक कहा गया है। इस वर्ष होलाष्टक 14 मार्च से आरंभ होंगे। होलाष्टक अवधि भक्ति की शक्ति का प्रभाव दिखाने की है। सत्ययुग में हिरण्यकश्यपु ने घोर तपस्या करके भगवान विष्णु से अनेक वरदान पा लिए। वरदान के अहंकार में आकंठ डूबे हिरण्यकश्यपु ने अनाचार-दुराचार का मार्ग चुन लिया। भगवान विष्णु से अपने भक्त की यह दुर्गति सहन नहीं हुई और उन्होंने हिरण्यकश्यपु के उद्धार के लिए अपना अंश उनकी पत्नी कयाधू के गर्भ में स्थापित कर दिया, जो जन्म के बाद प्रह्लाद कहलाए। प्रह्लाद जन्म से ही ब्रह्मज्ञानी थे। वे हर पल भक्ति में लीन रहते।