क्या आप जानते है? विवाह में क्यों होते है सात फेरे…

विवाह में सात फेरे ही क्यों? सप्तपदी में पहला पग भोजन व्यवस्था के लिए, दूसरा शक्ति संचय, आहार तथा संयम के लिए, तीसरा धन की प्रबंध व्यवस्था हेतु, चौथा आत्मिक सुख के लिए, पाँचवाँ पशुधन संपदा हेतु, छठा सभी ऋतुओं में उचित रहन-सहन के लिए तथा अंतिम सातवें पग में कन्या अपने पति का अनुगमन करते हुए सदैव साथ चलने का वचन लेती है तथा सहर्ष जीवन पर्यंत पति के प्रत्येक कार्य में सहयोग देने की प्रतिज्ञा करती है.
सप्तपदी प्रथा : सप्तपदी प्रथा आख़िरकार विवाह में सप्तपदी अग्नि के सात फेरे तथा वर-वधु द्वारा सात वचन ही क्यों निर्धारित किए गए हैं? इनकी संख्या सात से कम या अधिक भी हो सकती थी. भारतीय संस्कृति में सात की संख्या मानव जीवन के लिए बहुत विशिष्ट मानी गई है. वर-वधु सातों वचनों को कभी न भूलें और वे उनकी दिनचर्या में शामिल हो जाएं.
इंद्रधनुष के सात रंग : इंद्रधनुष के सात रंग ऐसा माना जाता है, क्योंकि वर्ष एवं महीनों के काल खंडों को सात दिनों के सप्ताह में विभाजित किया गया है. सूर्य के रथ में सात घोड़े होते हैं जो सूर्य के प्रकाश से मिलनेवाले सात रंगों में प्रकट होते हैं. आकाश में इंद्र धनुष के समय वे सातों रंग स्पष्ट दिखाई देते हैं. दांपत्य जीवन में इंद्रधनुषी रंगों की सतरंगी छटा बिखरती रहे इस कामना से सप्तपदी की प्रक्रिया पूरी की जाती है.
सात कदम में मैत्री : सात कदम में मैत्री मैत्री सप्तपदीन मुच्यते अर्थात एक साथ सिर्फ़ सात कदम चलने मात्र से ही दो अनजान व्यक्तियों में भी मैत्री भाव उत्पन्न हो जाता है. अत: जीवनभर का संग निभाने के लिए प्रारंभिक सात पदों की गरिमा एवं प्रधानता को स्वीकार किया गया है. सातवें पग में वर, कन्या से कहता है कि, हम दोनों सात पद चलने के पश्चात परस्पर सखा बन गए हैं.
सात सुरों का संगीत वर-वधु विवाह में परस्पर मिलकर यह कामना करते हैं कि उनके द्वारा मिलकर उठाए गए सात पगों से प्रारंभ जीवन में आनंददायी संगीत के सभी सुर समाहित हो जाएँ ताकि वे आजीवन प्रसन्न रह सकें. सर्वविदित है कि भारतीय संगीत में सा, रे, गा, मा, पा, धा, नि अर्थात – षड़ज, ऋषभ, गांधोर, मध्यम, पंचम, धैवत तथा निषाद ये सात स्वर होते हैं. इसी प्रकार अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल ये सात तल कहे गए हैं.
सात समंदर सा बंधन : सात समंदर सा बंधन मन, वचन और कर्म के प्रत्येक तल पर पति-पत्नी के रूप में हमारा हर कदम एक साथ उठें इसलिए आज अग्निदेव के समक्ष हम साथ-साथ सात कदम रखते हैं. हमारे जीवन में कदम-कदम पर मरीचि, अंगिरा, अत्रि, पुलह, केतु, पौलस्त्य और वैशिष्ठ ये सात ऋषि हम दोनों को अपना आशीर्वाद प्रदान करें तथा सदैव हमारी रक्षा करें.
भू, भुव: स्व:, मह:, जन, तप और सत्य नाम के सातों लोकों में हमारी कीर्ति हो. हम अपने गृहस्थ धर्म का जीवन पर्यंत पालन करते हुए एक-दूसरे के प्रति सदैव एकनिष्ठ रहें और पति-पत्नी के रूप में जीवन पर्यंत हमारा यह बंधन सात समंदर पार तक अटूट बना रहे तथा हमारा प्यार सात समुद्रों की भांति विशाल और गहरा हो.
हिन्दू संस्कृति मे सात का महत्व : हिन्दू संस्कृति मे सात का महत्व प्रात:काल मंगल दर्शन के लिए सात पदार्थ शुभ माने गए हैं. गोरोचन, चंदन, स्वर्ण, शंख, मृदंग, दर्पण और मणि इन सातों या इनमें से किसी एक का दर्शन अवश्य करना चाहिए. शौच, दंतधावन, स्नान, ध्यान, भोजन, भजन और शयन सात क्रियाएँ मानव जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं.
शास्त्रों में माता, पिता, गुरु, ईश्वर, सूर्य, अग्नि और अतिथि इन सातों को अभिवादन करना अनिवार्य बताया गया है. ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, लोभ, मोह, घृणा और कुविचार ये सात आंतरिक अशुद्धियाँ बताई गई हैं. मानव जीवन में सात सदाचारों का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है. इनका पालन करने से ये सात विशिष्ट लाभ होते हैं – जीवन में सुख, शांति, भय का नाश, विष से रक्षा, ज्ञान, बल और विवेक की वृद्धि होती हैं.
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