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जैन दर्शन में सर्वज्ञ एवं सर्वज्ञता का स्वरूप

-साध्वी सिद्धायिका भारतीय वाङ्मय की कतिपय धाराएं सर्वज्ञ एवं सर्वज्ञता के धरातल पर अपना अस्तित्‍व बनाकर रखती हैं। सर्वज्ञ की अवस्‍था जीवात्‍मा की सर्वोत्‍कृष्‍ट अवस्‍था है। चरम एवं परम स्थिति है। सामान्‍य भाषा में चैतन्‍यता के प्रकर्षता को सर्वज्ञता कहा जाता है। परिभाषा- जैन दर्शन में दर्शनकारों ने इसकी अनेक व्‍याख्‍याएं कही हैं। आचार्य पूज्‍यपाद कहते हैं- निरावरणज्ञाना: केवलिन:1 अर्थात आवरण रहित ज्ञान …

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