शत शत नेत्रों से बरसाकर नौ दिन तक अविरल अति जल। भूखे जीवों के हित दिए अमित तृण, अन्न, शाक शुचि फल।। ‘माता शताक्षी की तरह कोई दयालु हो ही नहीं सकता। अपने बच्चों का कष्ट देखकर वे नौ दिनों तक लगातार रोती ही रहीं।’ न शताक्षीसमा काचिद् दयालुर्भुवि देवता। दृष्ट्वारुदत् प्रजा स्तप्ता या नवाहं महेश्वरी।। (शिवपुराण, उ. सं. ५०।५२) …
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