दुर्गा आरती जय अंबे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति । तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥ मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को । उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥ कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै। रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥ केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी । सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥ कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे …
Read More »