जब हनुमान जी श्रीरामचंद्र जी की सुग्रीव से मित्रता कराते हैं, तब सुग्रीव अपना दुख, अपनी असमर्थता, अपने हृदय की हर बात भगवान के सामने निष्कपट भाव से रख देता है। सुग्रीव की निखालिसता से प्रभु गदगद हो जाते हैं। तब सुग्रीव को धीरज बंधाते हुए भगवान श्रीराम प्रतिज्ञा करते हैं : सुनु सुग्रीव मारिहउं बालिहि एकहिं बान।… ‘‘सुग्रीव! मैं …
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