अयोध्या के राजा रघु के दरबार में एक दिन इस बात पर बहस चल पड़ी कि राजकोष का उपयोग ऐसे किस प्रयोजन के लिए किया जाए जो सर्वाधिक सार्थक हो। रघु ने अपने सभी मंत्रियों व सभासदों से इस पर बिना हिचक अपना पक्ष रखने को कहा। इस विषय में दो पक्ष सामने आए। एक का कहना था कि सैन्य शक्ति में वृद्धि की जाए ताकि न केवल राज्य को समुचित सुरक्षा मिले बल्कि उसके विस्तार का भी मार्ग प्रशस्त हो। इस अभियान पर जो खर्च होगा उसकी भरपाई पराजित देशों से मिलने वाले संसाधनों से की जा सकेगी।
दूसरे पक्ष का कहना था कि राजकोष जन हित और जन स्वास्थ्य की योजनाओं पर खर्च किया जाए। अगर नागरिक स्वस्थ, सुखी, संतुष्ट, सुहृदयी और साहसी होंगे तो देश स्वत: समृद्धिशाली और स्वाभिमानी बन जाएगा।
जब सबने अपनी बात समाप्त कर दी तो राजा बोले, ‘‘युद्ध पीढिय़ों से लड़े जाते रहे हैं जिनके अनुभव मीठे कम कड़वे ज्यादा रहे हैं। इस बार युद्ध छेडऩा है तो अज्ञान, कुपोषण, बीमारी और आलस्य के विरुद्ध छेड़ें। इसके लिए लोकमंगल अभियान शुरू करें। सारी सपत्ति जन कल्याण पर खर्च की जाए।’’
उनके आदेश से राज्य में विकास की योजनाएं तेज कर दी गईं। घर-घर शिक्षा और स्वास्थ्य का प्रसार हुआ। शनै:-शनै: प्रजाजन हर दृष्टि से समुन्नत हो गए। आक्रमण की चर्चाएं समाप्त हो गईं। सुदृढ़ और सुसंगठित राज्य पर किसी ने हमला करने की जुर्रत नहीं की। चारों ओर सुख-शांति थी। बंजर भूमि सोना उगलने लगी।
अयोध्यावासी पहले से ज्यादा खुश थे। यदि प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक रहे तो परिवार, समाज और राष्ट्र की प्रगति सुनिश्चित है जिन स्वार्थों से हटकर जब हम इस दिशा में विचार करेंगे तो पाएंगे कि समृद्धि का मार्ग भी कर्तव्य-पथ से होकर ही गुजरता है।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।