भगवान शिव का ही लिंग रूप में क्यों होता है पूजन?

shiv-55b9b8936b9c6_lगवान शिव देवों के भी देव हैं। उनका पूजन देवता ही नहीं दानव भी करते हैं। वे साकार हैं तो निराकार भी हैं। सृष्टि का आदि और अंत उनमें ही समाया है।

शिवजी के संबंध में प्रायः यह प्रश्न किया जाता है कि उनकी ही पूजा लिंग रूप में क्यों की जाती है? हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवताओं की मान्यता है। फिर शिव ही लिंग रूप में क्यों पूजे जाते हैं?

यूं तो शिवजी की प्रतिमा, चित्र आदि का भी पूजन किया जाता है परंतु ज्यादातर उनके लिंग रूप का पूजन होता है। वास्तव में लिंग रूप का मतलब है उत्पत्ति और विलय का स्थान।

सबकुछ शिव से ही उत्पन्न होता है और एक दिन उनमें ही समा जाता है। अगर लिंग रूप का पूजन होता है तो उससे समस्त ब्रह्मांड का पूजन हो जाता है। अतः शिव ही ऐसे भगवान हैं जो प्रतिमा तथा लिंग रूप, दोनों में ही पूजे जाते हैं।

शिवलिंग प्रचंड ऊर्जा का भी प्रतीक है। इससे संसार के जीव प्राणशक्ति प्राप्त करते हैं वहीं ग्रह-नक्षत्र अपने पथ पर घूमते रहते हैं। शिवलिंग पर जल चढ़ाने से उस शक्ति को नमन किया जाता है।

वेदों में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के अर्थ में भी प्रयुक्त किया गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार सूक्ष्म शरीर के मूल में 17 तत्व हैं। 5 ज्ञानेंद्रियां, 5 कर्मेंद्रियां, 5 वायु तथा मन और बुद्धि। इन सबका दाता शिवलिंग ही है। पुराणों के अनुसार, प्रलयकाल में ये 17 तत्व शिवलिंग में ही समा जाते हैं।

इसके अलावा शिव और शक्ति दोनों लिंग रूप में समाए हैं। शक्ति के बिना शिव अधूरे हैं और शिव के बिना शक्ति का अस्तित्व नहीं। अतः लिंग रूप के पूजन करने से दोनों की कृपा प्राप्त होती है।

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