संस्कृति और उल्लास का पर्व है लोहड़ी

phpThumb_generated_thumbnail (39)लोहड़ी पर्व मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर भारत के उत्तरी राज्यों विशेषकर हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और कुछ अन्य आसपास के राज्यों में मनाया जाता है।

लोहड़ी में पंजाब से परिचय

लोहड़ी केवल पंजाब तक ही सीमित नहीं है। पर वहां इस त्योहार की बात ही कुछ और है। इस दिन यहां रंग और खुशी अपने शबाब पर होती है। लोहड़ी त्योहार ही है, प्रकृति को धन्यवाद कहने का, फिर उसे पंजाबी अंदाज देना हो, तो कुछ अलग जोश तो होगा है। लोहड़ी को मकर संक्रांति के आगमन की दस्तक भी कहा जाता है।

लोहड़ी संगीत संध्या

लोहड़ी की संध्या में लोकगीतों की प्रस्तुति खूबसूरत समां बांध देती है। मन को मोह लेने वाले गीत कुछ इस प्रकार के होते हैं कि एक बार को जाता हुआ बैरागी भी अपनी राह भूल जाए और सबसे अहम भंगड़ा। हिन्दू धर्म में यह मान्यता है कि आग में जो भी समर्पित किया जाता है वह सीधे हमारे देवों-पितरों को जाता है। लोहड़ी के दिन खेतों में झूमती फसलों को घर ला, अग्नि प्रज्ज्वलित कर उसके चारों ओर नाच-गाकर शुक्रिया अदा किया जाता है।

यह भी देवों की पूजा करने का एक अलग तरीका है। लोहड़ी के दिन भंगड़े की गूंज और शाम होते ही लकडिय़ों की आग और आग में डाले जाने वाले खाद्यान्नों की महक एक गांव को दूसरे गांव व एक घर को दूसरे घर से बांधे रखती है। यह सिलसिला देर रात तक यूं ही चलता रहता है। बड़े-बड़े ढोलों की थाप, जिसमें बजाने वाले थक जाएं, पर पैरों की थिरकन में कमी न हो, रेवड़ी, मूंगफली का स्वाद सब एक साथ रात भर चलता रहता है। भोर की पहली किरण के बाद ही लोहड़ी के रंग में कमी होती है।

लोहड़ी का एक विशेष वर्ग

यूं तो लोहड़ी उत्तरी भारत में प्रत्येक वर्ग, हर आयु के जन के लिए खुशियां लेकर आती है परंतु युवक-युवतियों और नवविवाहित दंपतियों के लिए यह दिन विशेष होता है। युवक-युवतियां सज-धज, सुंदर वस्त्रों में एक-दूसरे से गीत-संगीत की प्रतियोगिताएं रखते हैं। लोहड़ी की संध्या में जलती लकडिय़ों के सामने नवविवाहित जोड़े अपनी वैवाहिक जीवन को सुखमय व शांति पूर्ण बनाए रखने की कामना करते हैं। सांस्कृतिक स्थलों में लोहड़ी त्योहार की तैयारियां समय से कुछ दिन पूर्व ही आरंभ हो जाती हैं।

मकर-संक्रांति की दस्तक

लोहड़ी पर्व क्योंकि मकर-संक्रांति से ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है तथा इस त्योहार का सीधा संबंध सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से होता है। सूर्य स्वयं आग व शक्ति के कारक हैं, इसलिए इनके त्योहार पर अग्नि की पूजा तो होनी ही है। किसान इसे रबी की फसल आने पर अपने देवों को प्रसन्न करते हुए मनाते हैं।

 

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