इस वजह से बजरंगबली में आया था अहंकार…

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब श्रीराम और लक्ष्मण के लंका जाने के लिए पुल के बनाने की तैयारी चल रही थी, तब श्रीराम ने एक इच्छा जाहिर की थी कि वह समुद्र सेतु पर शिवलिंग स्थापित करना चाहते हैं। उन्होंने हनुमान जी से कहा कि शुभ मुहूर्त के अंदर काशी जाकर भगवान शंकर से लिंग मांग कर लाओ। हनुमान जी पलभर में काशी पहुंच गए। इस पर उन्हें अपने आप पर गर्व का हो गया। श्रीराम जी को इस बात का पहले ही पता लग चुका था। उन्होंने सुग्रीव को बुलाया और कहा कि मुहूर्त बीतने वाला है, अतएव मैं रेत से बनाकर एक लिंग स्थापित कर देता हूं।

कुछ ही समय में हनुमान जी श्रीराम के पास पहुंच गए और उन्होंने श्रीराम से कहा काशी भेजकर मेरे साथ ऐसा क्यों किया? श्रीराम ने कहा मुझसे भूल हुई है। मेरे द्वारा स्थापित इस बालू के लिंग को उखाड़ दो। मैं अभी तुम्हारे लाए लिंग को स्थापित कर देता हूं। हनुमान जी ने पूंछ में लपेटकर शिवलिंग उखाड़ने का प्रयास किया शिवलिंग टस से मस नहीं हुआ।

हनुमान जी को जो अपनी शक्ति और गति का जो घमण्ड था, वह पलभर में चकनाचूर हो गया। उन्होंने श्रीराम के चरणों में शीश झुका लिया और अपनी नादानी पर क्षमा मांगी। इस प्रसंग से यह सीखा जा सकता है कि कभी भी अपने बाहुबल और ज्ञान पर घमंड नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस दुनिया में कुछ भी स्थाई नहीं है।

तो हनुमान जी को ऐसे मिला बल, बुद्धि और विद्या
गरूड़ को क्यों हुआ श्रीराम के भगवान होने पर शक

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