नागपंचमी का त्यौहार हर साल सावन माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को पूरा देश मनाता है। नाग को हिंदू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त हैं। नागदेवता की विधिवत रूप से इस दिन पूजा की जाती है। आज हम आपको नाग देवता और भगवान शिव से जुड़ीं एक ऐसी जानकारी देने जा रहे हैं, जिसमें आप यह जानेंगे कि आखिर भगवान शिव के कारण कैसे नाग प्रजाति विषैली हो गई थी। 
शिव के विषपान से विषैली हुई नाग प्रजाति
पुराणों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि पहले नाग प्रजाति विषैली नहीं थी, भगवान शिव जब विषपान कर रहे थे उस दौरान एक प्रसंग घटा। दरअसल, बात यह है कि भगवान शिव ने जब समुंद्र मंथन किया था तो उसमें से जहर यानी कि विष निकला था और विषपान करने के लिए कोई भी तैयार नहीं था, इस अवस्था में भगवान शिव ने इस सृष्टि की रक्षा करते हुए विष अपने कंठ में धारण कर लिया। भगवान शिव जब विष पी रहे थे, तब ही उसकी कुछ बूंद उनके सांप वासुकि के मुख में समा गई। कहा जाता है कि तब से ही सांप जाति विषैली हो गई थी। बता दें कि इस दौरान नाग ने रस्सी का काम भी किया था।
भगवान शिव के गले में क्यों लिपटे रहते हैं नाग देवता
नाग देवता का इतिहास बेहद प्राचीन है। जहां शेषनाग ने भगवान विष्णु की सेवा करना स्वीकार किया, तो वहीं वासुकि (भगवान शिव के सांप का नाम) ने भगवान शिव का आभूषण बनना स्वीकार किया। वासुकि भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे और वासुकि की भक्ति ने भगवान शिव को प्रसन्न कर दिया था। बता दें कि समुंद्र मंथन के समय वासुकि ने रस्सी का कार्य किया था और इसी कारण सागर मंथन संभव हो सका। तब इनकी भक्ति से शिव जी प्रसन्न हुए और उन्हें अपने गले का आभूषण बनने का वरदान भगवान शिव ने दिया। तब सहर्ष वासुकि ने इसे स्वीकार कर लिया।
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