भगवान गणपति प्रथम पूज्य हैं। उन्हें गजानन भी कहा जाता है जिसका अर्थ है हाथी जैसे मुख वाला। गणेशजी का मुख हाथी जैसा क्यों है? इस संबंध में पौराणिक कथा आपने जरूर पढ़ी होगी। गणेशजी को हाथी का मस्तक लगाया गया लेकिन उनका पूर्व मस्तक कहां गया?
इसके बारे में भी एक पौराणिक कथा में उल्लेख किया गया है। कहा जाता है कि जब गणेशजी का जन्म हुआ तो सभी देवी-देवता उनके दर्शन के लिए एकत्रित हुए। उस समय शनिदेव भी वहां आ गए। चूंकि शनि की दृष्टि मंगलकारी नहीं मानी जाती।
इसलिए जब शनिदेव ने गणेश का मुख देखा तो उनका मस्तक धड़ से अलग हो गया। माना जाता है कि वह मुख चंद्र मंडल में विलीन हो गया।
दूसरी कथा के अनुसार, जब देवी पार्वती स्नान कर रही थीं तब गणेशजी पहरा दे रहे थे। उसी दौरान शिवजी का आगमन हुआ। गणेशजी ने शिवजी को अंदर जाने से रोक दिया। क्रुद्ध होकर शिवजी ने गणेश का मस्तक काट दिया जो बाद में चंद्रलोक चला गया।
बाद में उन्हें हाथी का मस्तक लगाया गया। माना जाता है कि गणेशजी का असली मस्तक आज भी चंद्रलोक में ही विद्यमान है। दार्शनिकाें ने गणपति के गजमुख को भी बहुत सुंदर और मंगलकारी माना है। कहते हैं कि गजमुख में सफलता के कई सूत्र छिपे हैं। गणपति के दर्शन करने से मन को प्रसन्नता प्राप्त होती है।
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।