इस कथा के बिना अधूरा है देवशयनी एकादशी का व्रत, जरूर करें इसका पाठ

देवशयनी एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखता है। इस तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। एक साल में कुल 24 एकादशी पड़ती हैं। एक महीने में दो बार एकादशी आती हैं। इस साल देवशयनी एकादशी का व्रत आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 06, जुलाई 2025 यानी आज रखा जा रहा है।

अगर आप इस व्रत का पालन कर रहे हैं, तो इसकी कथाका पाठ जरूर करें, क्योंकि इसके बिना एकादशी व्रत अधूरा माना जाता है, तो आइए यहां पढ़ते हैं।

देवशयनी एकादशी व्रत कथा
एक समय की बात है कि सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती राजा राज करता था। उनके राज में प्रजा बेहद सुखी थी। एक बार मांधाता के राज्य में तीन वर्ष तक बारिश नहीं हुई, जिसकी वजह से अकाल पड़ा गया था। हर तरफ त्रासदी का माहौल बन गया था। इस कारण लोग पिंडदान, हवन, यज्ञ कथा और व्रत समेत आदि काम करने लगे। प्रजा ने राजा मांधाता को इस बारे में विस्तार से बताया। राज्य में अकाल को देखकर राजा अधिक चिंतित हुआ।

उन्हें लगता था कि उनसे आखिर ऐसा कौन सा पाप हो गया, जिसके कारण इतनी कठोर सजा मिल रही है। इस समस्या से निजात पाने के लिए राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए। इस दौरान वह लोग ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुंचे गए। ऋषिवर ने राजा का कुशलक्षेम और जंगल में आने की वजह पूछी।

व्रत का प्रभाव
राजा ने कहा कि मैं पूरी निष्ठा से धर्म का पालन करता हूं। इसके बाद भी राज्य में ऐसा अकाल क्यों पड़ रहा है? आप मेरी इस समस्या का समाधान करें। मांधाता की बात को सुनकर महर्षि अंगिरा ने कहा कि यह सतयुग है। ऐसे में छोटे से पाप का बड़ा दंड का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करें। इस व्रत को करने से राज्य में बारिश जरूर होगी। इसके बाद राजा ने एकादशी व्रत को किया।

इस व्रत के प्रभाव से राज्य में मूसलधार बारिश हुई, जिससे लोगों की समस्या का हल निकल गया है। कहा जाता है कि देवशयनी एकादशी व्रत करने से भक्तों के सभी दुखों का अंत होता है। इसके साथ ही सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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