भगवान श्रीकृष्ण के बारे में कई ऐसी कथाएं हैं जो आपने सुनी होंगी, पढ़ी होंगी. ऐसे में आज हम आपको कान्हा के उस अवतार के बारे में बताने जा रहे हैं जब उन्हें दो बार किन्नर भी बनना पड़ा था. जी हाँ, आपको बता दें कि पहली बार जब कान्हा किन्नर बने तो वह प्यार की मजबूरी थी और दूसरी बार जब किन्नर बने तो वह धर्म के लिए जरूरी था. आइए जानते हैं दोनों कथाएं.
प्यार के लिए किन्नर बने कृष्ण – एक बार देवी राधा अपने पर मान कर बैठीं. सखियों ने इन्हें काफी समझाने का प्रयास किया लेकिन इनका मान कम ना हुआ. सखियां जितना राधा को समझातीं राधा का मान उतना ही बढ़ता जा रहा था. भगवान श्रीकृष्ण राधा से मिलना चाह रहे थे लेकिन मिलन नहीं हो पा रहा था. ऐसे में सखियों के परामर्श से कान्हा ने किन्नर रूप बना लिया और नाम रखा श्यामरी सखी. श्यामरी सखी वीणा बजाते हुए राधा के घर के करीब आए तो राधा वीणा की स्वर लहरियों से मंत्रमुग्ध होकर घर से बाहर आयीं और श्यामरी सखी के अद्भुत रूप को देखकर देखती रह गईं. राधा ने श्यामरी सखी को अपने गले का हार भेंट करना चाहा तो कान्हा ने कहा देना है तो अपने मानरूप रत्न दे दो. यह हार नहीं चाहिए मुझे. राधा समझ गईं की यह श्यमरी कोई और नहीं श्याम हैं. राधा का मान समाप्त हो गया और राधा कृष्ण का मिलन हुआ.
धर्म के लिए किन्नर बने कृष्ण – महाभारत युद्ध के दौरान पाण्डवों की जीत के लिए रणचंडी को प्रसन्न करना था. इसके लिए राजकुमार की बली दी जानी थी. ऐसे में अर्जुन के पुत्र इरावन ने कहा कि वह अपना बलिदान देने के लिए तैयार है. लेकिन इरावन ने इसके लिए एक शर्त रख दी. शर्त के अनुसार वह एक रात के लिए विवाह करना चाहता था. एक रात के वर से विवाह के लिए कोई कन्या कैसे तैयार होती इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के धर्म युद्ध में पांडवों को वियजी बनाने के लिए स्वयं किन्नर रूप धारण किया. भगवान श्रीकृष्ण ने इरावन के विवाह किया. अगले दिन इरावन की बली दे दी गई. आज भी हर साल बड़ी संख्या में किन्नर तमिलनाडु के ‘कोथांदवर मंदिर’ में इस परंपरा को निभाते हैं. किन्नर अपने देवता इरावन से विवाह करके अगले दिन विधावा बन जाते हैं.
Shree Ayodhya ji Shradhalu Seva Sansthan राम धाम दा पुरी सुहावन। लोक समस्त विदित अति पावन ।।