हम यह जानते हैं, कि हमारा शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है। इन तत्वों में से पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु को हम अनुभव कर सकते हैं, लेकिन आकाश हमारे अनुभव से परे है। क्या अंतरिक्ष का असीमित फैलाव ही आकाश तत्व है?
प्रश्न:
नमस्कारम सद्गुरु। सद्गुरु पंचभूत का एक तत्व आकाश है। आपके एक यूट्यूब वीडियो में मैंने सुना कि आपने आकाश के उस स्थान को ईथर कहा है। समय की यात्रा के बारे में चर्चा करते हुए आपने आकाश की बात की। तो इस ईथर और आकाश में मैं थोड़ा भ्रमित हो गया हूं। क्या आप कृपया ईथर के बारे में विस्तार से बता सकते हैं?
सद्गुरु:
मुझे यह जानकर खुशी हुई कि आप भ्रमित हैं क्योंकि मूर्खतापूर्ण निष्कर्षों से कहीं बेहतर है, भ्रम की स्थिति में होना। भ्रम का मतलब है कि आप अब भी खोज कर रहे हैं, यह एक अच्छी बात है। मैं आपको भ्रमित रखना चाहता हूं क्योंकि मैं चाहता हूं कि आप हमेशा खोज करते रहें। किसी ने नहीं कहा कि आकाश, अंतरिक्ष है, हमने कहा कि आकाश ईथर है – यह सटीक अर्थ नहीं है मगर काफी हद तक सही है।
अगर आप इस दिमाग को ज्यादा शुद्ध और परिष्कृत धरातल तक विकसित कर सकें जिससे उसमें किसी तरह की कोई अस्थिरता या हलचल न हो, तो वह पूरी तरह समतल दर्पण की तरह काम करता है। ईथर अंतरिक्ष नहीं है, ईथर अस्तित्व का एक आयाम है जो सूक्ष्म है। जब हम अंतरिक्ष या स्पेस की बात करते हैं, तो हम काल या अनस्तित्व के बारे में बात करते हैं, हम शिव की बात कर रहे हैं। शिव का अर्थ है ‘वह जो नहीं है।’ आकाश से हमारा मतलब है ‘वह जो है।’ यहां एक इंसान के रूप में आपके अंदर स्थूल से सूक्ष्म तक बहुत से स्तर हैं। अगर आपको कब्ज है, तो भी आपके अंदर कुछ स्थूल है, हम्म? इसके ऊपर शरीर के कुछ ज्यादा परिष्कृत पहलू हैं। उसके ऊपर फेफड़ों में भरी हुई हवा है, उसके ऊपर एक दिमाग है, विचार, भावनाएं और तमाम चीजें हैं। साथ ही उससे जीवन आता और जाता रहता है। इसमें आकाश भी शामिल होता है। शरीर की रचना में जल, भौतिक वस्तुएं, हवा, तापमान, अग्नि और आकाश का हाथ होता है। इसे समझने की कोशिश मत कीजिए, बस इसे सही तरीके से व्यवस्थित कीजिए क्योंकि यह अपने आप में एक लघु ब्रह्मांड है।
योग के आयाम में हम हमेशा से इसकी बात करते रहे हैं मगर आज आधुनिक भौतिकी ने भी संरचना के सिद्धांत की बात कही है। इसमें बताया गया है कि ब्रह्मांड में – चाहे वह आणविक हो या ब्रह्मांडीय – डिजाइन या बनावट का तत्व मूल रूप से एक ही होता है। हमारे जैसे रूप-आकार वाले इंसानों, झींगुर, केंचुए, पक्षी, रेंगने वाले जीव, सभी में एक ही मूल डिजाइन होता है। अणु से लेकर ब्रह्मांड तक हर चीज की मूलभूत बनावट समान होती है। इस बनावट के अलग-अलग रूपों में विकास की जटिलता भिन्न होती है। आपकी बनावट किसी अमीबा की बनावट से ज्यादा जटिल और बेहतर होती है, मगर मूलभूत बनावट एक ही होती है। केवल जटिलता बढ़ती है।
आप ब्रह्मांड को देखने की कोशिश नहीं करते क्योंकि आप ब्रह्मांड को पूरी तरह नहीं देख सकते। ऐसी कोई जगह नहीं है जहां आप बैठकर ध्यान से ब्रह्मांड को देख सकें। असल में आप अपने अंदर घटित होने वाली चीजों के अलावा किसी चीज पर ध्यान नहीं दे सकते। चाहे आप टेलीस्कोप लेकर किसी तारे को देखें, वह तारा आपको उसी तरह दिखाई देता है, जैसी छवि आपके मन में है, है न? आप किसी तारे को नहीं देखते। यही वजह है कि आपको वे तारे दिखाई देते हैं, जिनका असल में अस्तित्व नहीं होता। तमाम तारे, जिन्हें आप देखते हैं, उनका अस्तित्व नहीं होता मगर आपके दिमाग में उनकी एक खास छवि होती है, इसीलिए आप उसे जानते हैं। दूसरे शब्दों में आप सिर्फ इसका अनुभव कर सकते हैं या यह इकलौता रास्ता है जिससे आप किसी भी चीज का अनुभव कर सकते हैं।
चाहे आप उस भोजन का अनुभव करना चाहते हैं, जो आप खाते हैं या उस हवा का, जिसमें आप सांस लेते हैं, अपने आस-पास की दुनिया का या ब्रह्मांड का – आप उसका अनुभव उसी तरह कर पाते हैं, जिस तरह आपका दिमाग है। अगर आपके दिमाग में स्पष्टता है, तो आप किसी भी चीज को उसके वास्तविक रूप में देख पाएंगे। अगर उसने बहुत से रूप और आकार अपना लिए हैं, तो आप उसे उतने ही अलग-अलग रूपों में देख सकते हैं। इन दिनों मेरे ख्याल से दर्पण ज्यादातर चपटे हो गए हैं। अब भी अगर आप कोई सस्ता दर्पण खरीदें तो आप इस तरह दिखेंगे।
ईथर अंतरिक्ष नहीं है, ईथर अस्तित्व का एक आयाम है जो सूक्ष्म है। जब हम अंतरिक्ष या स्पेस की बात करते हैं, तो हम काल या अनस्तित्व के बारे में बात करते हैं, हम शिव की बात कर रहे हैं। शिव का अर्थ है ‘वह जो नहीं है।’ आकाश से हमारा मतलब है ‘वह जो है।’लेकिन अगर आप कुछ खास तरह के कान्केव मिरर खरीदें, तो आप निश्चित रूप से एक दिन में अपना वजन कम कर सकते हैं। आप बस उसके सामने खड़े होकर देखें, आप बहुत दुबले दिखाई देंगे। दर्पण आपको आपके अलग-अलग अक्स दिखाता है। अगर आपने हमेशा थोड़े बिगड़े हुए दर्पण में अपना चेहरा देखा है, तो थोड़े समय बाद आप मान लेंगे कि आप ऐसे ही दिखते हैं। है कि नहीं? हां या नहीं?
आपको यकीन हो जाता है कि आप ऐसे ही दिखते हैं क्योंकि आपने हर दिन खुद को देखा और आप ऐसे ही दिखाई दिए। इसलिए आपको यकीन होने लगता है कि आप ऐसे दिखते हैं। अब भी आपको लगता है कि दुनिया इस तरह दिखती है क्योंकि आपके दिमाग में उसकी ऐसी ही छवि है। अगर आप इस दिमाग को ज्यादा शुद्ध और परिष्कृत धरातल तक विकसित कर सकें जिससे उसमें किसी तरह की कोई अस्थिरता या हलचल न हो, तो वह पूरी तरह समतल दर्पण की तरह काम करता है। उसके बाद वह हर चीज को उसके असली रूप में दर्शाएगा मगर उल्टा। आप जानते हैं कि दर्पण में सब कुछ उल्टा होता है। आपके अंदर उसे विकृत किए बिना सुधारने की समझ होनी चाहिए।