काशी में क्यों खेली जाती है चिता की राख से होली? जानें

 सनातन धर्म में होली के पर्व का बेहद खास महत्व है। इस त्योहार को देशभर में कई तरीकों से मनाया जाता है। मथुरा की होली के अलावा काशी की मसान होली भी बेहद प्रसिद्ध है। काशी में फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी के अगले दिन हर साल मसान होली का उत्सव मनाया जाता है। इस होली में लोग अधिक संख्या में शामिल होते हैं। इस बार मसान होली 21 मार्च को है। इस दिन लोग चिता की राख से होली खेलते हैं और देवों के देव महादेव की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि काशी में चिता की राख से ही क्यों होली खेली जाती है।

ये है वजह

काशी में खेली जाने वाली मसान होली को चिता भस्म होली के नाम से भी जाना जाता है। चिता की राख से होली खेलने की परंपरा कई वर्षों पुरानी है। यह होली देवों के देव महादेव को समर्पित है। मसान की होली को मृत्यु पर विजय का प्रतीक माना गया है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान भोलेनाथ ने यमराज को हराने के बाद चिता की राख से होली खेली थी। तभी से इस दिन को यादगार बनाने के लिए प्रत्येक वर्ष मसान होली खेली जाती है। यह उत्सव 2 दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन लोग चिता की राख को एकत्रित करते हैं और इसके दूसरे दिन होली खेलते हैं।

ऐसे मनाते हैं मसाने की होली

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि चिता की राख से होली खेलने का नजारा आपको सिर्फ काशी में ही देखने को मिलेगा। इस उत्सव के दौरान शिव भक्त नाचते-गाते और जश्न मनाते हैं। काशी का मणिकर्णिका घाट हर-हर महादेव से गूंज उठता है। इस खास अवसर पर लोग चिता की राख और गुलाल एक दूसरे पर अर्पित कर सुख, समृद्धि, वैभव संग शिव का आशीर्वाद पाते हैं।

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