वट सावित्री व्रत मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा अपने पति की दीर्घायु के साथ-साथ सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य की कामना के लिए रखा जाता है। इस दिन पर वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही इस तिथि पर शनि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। तो चलिए जानते हैं कि इस दिन पर क्या करें और क्या नहीं।
वट वृक्ष का है खास महत्व
वट सावित्री व्रत के दिन मुख्य रूप से वट वृक्ष की पूजा कि जाती है, क्योंकि कथा के अनुसार, सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण वट वृक्ष के नीचे ही वापस पाए थे। व्रत के दौरान महिलाएं वट वृक्ष के नीचे बैठकर वट सावित्री की कथा सुनती है और वट वृक्ष को जल अर्पित करती हैं।
इसके बाद वृक्ष को रोली, चंदन का टीका लगाया जाता है। अंत में वृक्ष के चारों तरफ सात बार कच्चा धागा लपेटा जाता है और परिक्रमा की जाती है। इसके अगले दिन ग्यारह भीगे हुए चने खाकर व्रत का पारण किया जाता है।
बनता है ये प्रसाद
व्रत वाले दिन व्रती महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत का प्रसाद बनाती हैं। इस दौरान सिंघाड़े के आटे से बने पकवान के साथ-साथ गुड़ और आटे से बना पकवान बनाया व खाया जाता है।
वट सावित्री व्रत में चना, पूरी और पूए का भोग लगाकर प्रसाद के रूप में इसे ग्रहण कर सकते हैं। इस दिन पर कुछ महिलाएं इस दिन सिर्फ फलाहार करती हैं और कई जगहों पर इस व्रत में मीठी पुड़िया और मुरब्बा भी खाया जाता है।
भूल से भी न करें ये काम
वट सावित्री व्रत के दिन व्रती महिला के साथ-साथ घर के अन्य लोगों को भी तामसिक भोजन से दूरी बनाकर रखनी चाहिए। साथ ही इस दिन पर चावल और दाल से बनी चीजों का भी सेवन भी नहीं किया जाता।
साथ ही इस दिन पूजा के दौरान काले रंग के कपड़े पहनना भी शुभ नहीं माना जाता। इसके साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि वट वृक्ष की परिक्रमा हमेशा घड़ी की दिशा यानी दक्षिणावर्त दिशा में ही करनी चाहिए।
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