महेश नवमी हर साल भक्तिभाव के साथ मनाई जाती है। यह पर्व भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के लिए समर्पित , जो हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आता है। शिव भक्तों के लिए इस दिन का विशेष महत्व है।
वहीं, इसकी डेट को लेकर लोगों के मन में थोड़ी कन्फ्यूजन बनी हुई है, तो आइए इसकी सही डेट जानते हैं, जो इस प्रकार है।
महेश नवमी कब है?
हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि की शुरुआत 03 जून को रात 09 बजकर 56 मिनट पर होगी। वहीं, इसका समापन 04 जून को देर रात 11 बजकर 54 मिनट पर होगा। ऐसे में 04 जून को महेश नवमी का व्रत रखा जाएगा।
महेश नवमी का धार्मिक महत्व
ऐसा माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती ने ऋषियों के श्राप से पत्थर में परिवर्तित हुए 72 क्षत्रियों को श्राप मुक्त कर नया जीवन दिया था। उन्हें आशीर्वाद देते हुए भगवान शिव ने कहा था कि आज से उनका वंश ‘माहेश्वरी’ कहलाएगा।
इस प्रकार, यह दिन माहेश्वरी समाज के लिए वंशोत्पत्ति का प्रतीक है। कहते हैं कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है। साथ ही पूर्व जन्म के पापों से मुक्ति मिलती है।
महेश नवमी पूजा विधि
महेश नवमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
घर के मंदिर को अच्छी तरह साफ करें और गंगाजल छिड़कें।
भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें।
उन्हें गंगाजल, चंदन, कुमकुम, अक्षत, सफेद फूल, बिल्वपत्र, धतूरा और भांग चढ़ाएं।
खीर, सफेद मिठाई का भोग लगाएं।
शिव जी के सामने दीपक जलाएं।
‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का ज्यादा से ज्यादा जप करें।
महेश नवमी की व्रत कथा का पाठ करें।
भगवान शिव और माता पार्वती की भावपूर्ण आरती करें।
अगर हो पाए, तो इस दिन रुद्राभिषेक जरूर करें या करवाएं।
अंत में भूलचूक के लिए माफी मांगे।