अधिकतर लोग किसी शुभ काम को शुरू करने से पहले संकल्प करते हैं और गणेश जी को याद करते हैं। कुछ लोग शुभारंभ करते समय सर्वप्रथम श्रीगणेशाय नम: लिखते हैं। इसके अलावा यह रिवाज़ भी है कि सभी देवताओं से पहले श्री गणेश का पूजन किया जाता है। इस रिवाज़ के बारे मेें तो अधिकतर लोग जानते हैं, लेकिन ये बहुत कम लोग जानते हैं कि सबसे पहले गणेशजी का ही पूजन क्यों किया जाता है।
दरअसल, इस संबंध में एक कहानी प्रचलित है. एक बार सभी देवों में यह प्रश्न उठा कि पृथ्वी पर सर्वप्रथम किस देव की पूजा होनी चाहिए. सभी देव अपने को महान बताने लगे। अंत में इस समस्या को सुलझाने के लिए देवर्षि नारद ने शिव को निणार्यक बनाने की सलाह दी। शिव ने सोच-विचारकर एक प्रतियोगिता आयोजित की। जो अपने वाहन पर सवार हो पृथ्वी की परिक्रमा करके प्रथम लौटेंगे, वे ही पृथ्वी पर प्रथम पूजा के अधिकारी होंगे। सभी देव अपने वाहनों पर सवार हो चल पड़े। गणेश जी ने अपने पिता शिव और माता पार्वती की सात बार परिक्रमा की और शांत भाव से उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े रहे। कार्तिकेय अपने मयूर वाहन पर आरूढ़ हो पृथ्वी का चक्कर लगाकर लौटे और दर्प से बोले, ‘मैं इस स्पर्धा में विजयी हुआ, इसलिए पृथ्वी पर प्रथम पूजा पाने का अधिकारी मैं हूं।
शिव अपने चरणों के पास भक्ति-भाव से खड़े विनायक की ओर मुस्कुराकर देखते हुए बोले, पुत्र गणेश तुमसे भी पहले ब्रह्मांड की परिक्रमा कर चुका है, वही प्रथम पूजा का अधिकारी होगा। कार्तिकेय खिन्न होकर बोले, ‘पिताजी, यह कैसे संभव है। गणेश अपने मूषक वाहन पर बैठकर कई वर्षो में ब्रह्मांड की परिक्रमा कर सकते हैं। आप कहीं मजाक तो नहीं कर रहे हैं। नहीं बेटे गणेश अपने माता-पिता की परिक्रमा करके यह प्रमाणित कर चुका है कि माता-पिता ब्रह्मांड से बढ़कर कुछ और हैं. गणेश ने जगत् को इस बात का ज्ञान कराया है। इसलिए श्री गणेश का पूजन आज से सर्वप्रथम किया जाएगा।